शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
सती माता को भ्रम हुआ । वे सोचने लगी कि-
ये सच्चिदानंद है ! क्या यह भगवान है ? भगवान भी क्या पत्नी के लिए रोते हैं ?अगर ये भगवान होते तो इनको पता नहीं होता कि उनकी पत्नी कहाँ है ! यह साधारण मनुष्य है, भगवान नहीं है। पूरा विश्व मेरे पति शिव जी को प्रणाम करता है और मेरे शिव जी ने एक साधारण जीव को सच्चिदानंद कहकर प्रणाम किया है ! ये भगवान नहीं हो सकते ।
शंकर भगवान ने सती माता को बहुत समझाया कि
"मान जाइए देवी! ये भगवान ही हैं, ये सच्चिदानंद ही हैं" किंतु सती माता समझी नहीं और चल पड़ी परीक्षा लेने…
अंततः शिव बोले:
"जो तुम्हरे मन अति संदेहू । तौ किन जाइ परीक्षा लेहू।।"
"यदि तुम्हारे मन में सन्देह है तो जाकर परीक्षा ले लीजिए। लेकिन ध्यान रखिएगा,
देवी ! आप जिनकी परीक्षा लेने जा रही हैं; वे जीव नहीं हैं, जगदीश हैं । इसलिए तनिक विवेक पूर्वक विचार करके परीक्षा लीजिएगा।"
शिव जी सोच रहे हैं कि "मेरे समझाने पर भी सती नहीं मानी है अब इनका कल्याण होने वाला नहीं है। अब वही होगा जो राम जी ने लीला रची हुई है।"
"होइहि सोइ जो राम रचि राखा ।को करि तरक बढ़ावहि साखा।।"
सती माता चली श्रीराम जी की परीक्षा लेने और मन में सोचने लगी-
"पुनि पुनि ह्रदय विचार करि, धरि सीता कर रूप।
आगे होइ चलि पंथ तेहि , जेहि आवहि नर भूप।।"
"क्यों ना मैं सीता मैया का ही रूप बनाकर उनकी परीक्षा लेने जाऊँ । क्योंकि मुझे तो पता है कि वे भगवान नहीं हैं । यदि भगवान होंगे तो वे मुझे पहचान जाएँगे ।"
इस प्रकार जिस रास्ते पर भगवान राम और लक्ष्मण चल रहे थे, उसी रास्ते पर सती मैया भगवान राम और लक्ष्मण जी के आगे -आगे सीता माता का रूप बनाकर चलने लगीं।
लक्ष्मण जी ने देखा और तुरंत समझ गए कि ये सीता माता नहीं हैं क्योंकि भाभी तो सदैव भैया के पीछे-पीछे ही चलती हैं।
इधर राम जी ने देखा और दोनों हाथों को जोड़कर कहा कि
"मैं दशरथ नंदन राम आपको प्रणाम करता हूँ । मैया! बाबा कहाँ हैं? आप अकेली ही भ्रमण कर रहीं हैं वन में!"
जैसे ही भगवान राम जी ने यह बात कही, मानो सती मैया के पैरों के नीचे से धरती खिसक गई हो। स्वयं के अपराध का पता चला -
सती माता स्तब्ध रह गईं। उनका भ्रम टूट गया।
"निज अज्ञान राम पर ठाना। मै संकर कर कहा ना माना ।।"
मैया को पश्चाताप हुआ कि
"अज्ञानतावश मैने अपने पति शिव जी की बातों पर विश्वास नहीं किया ।मैने रामजी पर संशय कर लिया !"
बिना कुछ कहे सती मैया भगवान शंकर के पास गई । शिव जी ने इतना पूछा —देवी! आपने जिस विधि से श्रीराम जी की परीक्षा ली है, वह विधि बताइए मुझे ।
सती माता सत्य बताना चाहती थी किंतु माया के वशीभूत होकर वे असत्य बोल गईं : सती बोली—
"कछु ना परीक्षा लीन्ह गोसाई। कीन्ह प्रणाम तुम्हारिहि नाई।।"
माँ ने असत्य कह दिया— मैने कोई परीक्षण नहीं किया है।केवल आपकी ही भांति दूर से ही प्रणाम कर के चली आई।
"तब संकर देखेउ धरि ध्याना । सती जो कीन्ह चरित सब जाना।।"
बाबा को सती की बात पर विश्वास नही हुआ और ध्यान में जाकर शिवजी ने सब देख लिया । क्या देख लिया -
"सती कीन्ह सीता कर वेषा। "
बाबा ने देखा कि मेरी सती ने मेरी माता सीता का रूप धारण कर लिया !
भगवान शिव को इतना कष्ट हुआ ह्रदय में कि उसी क्षण बाबा ने नेत्र बंद कर मन-ही-मन संकल्प लिया —
आज के बाद जब तक सती इस शरीर में है , मेरा और सती का मिलन होने वाला नही है।
शिव जी ने सती मैया का त्याग कर दिया।
🔸 शिव जी की समाधि :
बाबा ने अपने संकल्प को सती मैया को नहीं बताया और कैलाश पर्वत पर जाकर बाबा सीधे समाधि में प्रवेश कर गए।
📖 नोट – शेष कथा अगले भाग में…
📖 पिछला भाग पढ़ें: सती का मोह – भाग 2
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अद्भुत जय श्री राम
ReplyDeleteJai shree ram
ReplyDeleteJay shree Ram
ReplyDeleteJai Shree Ram 🙏
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ReplyDeleteजय श्रीराम 🙏
ReplyDeleteजय श्री हनुमान 🙏
Jai Shree Ram
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ReplyDeleteJai Sreeram
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