शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
भारद्वाज ऋषि का संशय समाप्त करने के लिए याज्ञवल्क्य ऋषि कथा को त्रेता युग में लेकर जाते हैं -
तुलसीदास जी लिखते हैं-
एक बार त्रेतायुग माही । शंभु गये कुम्भज ऋषि पाही।।
संग सती जग जननि भवानी । पूजे ऋषि अखिलेश्वर जानी।।
याज्ञवल्क्य ऋषि भारद्वाज ऋषि को कथा सुनाते हुए कहते हैं-
एक बार त्रेता युग में भगवान शिव सती मैया को साथ लेकर कैलाश से नीचे उतरे और दंडकारण्य में अगस्त्य ऋषि (कुम्भज ऋषि) के आश्रम में पहुँचे, भगवान श्री राम की कथा सुनने के लिए ।अगस्त्य मुनि अचानक भगवान शंकर और सती मैया को अपने सामने देखकर प्रसन्न हो गए।अगस्त्य मुनि ने भगवान शंकर और सती मैया को दंडवत प्रणाम किया ।
अगस्त्य मुनि ने भगवान शंकर और सती मैया को दिव्य आसन पर बिठाकर कर उनका विधिवत पूजन-सत्कार किया । उसके बाद अगस्त्य मुनि ने भगवान शंकर और माता सती को 9 दिनों तक राम कथा सुनाई ।
"राम कथा पुनि बरद बखानी । सुनि महेश परम सुख पानी।।"
भगवान शिव रामकथा में मग्न हो गए, रामकथा को सुनकर उन्हें परम सुख प्राप्त हुआ किन्तु सती मैया....
एक बडी अद्भुत एवं सत्य बात है कि कथा जब होती है, तब जरूरी नहीं है कि सभी लोग कथा को श्रवण करें । कुछ लोग बैठे तो जरूर होते हैं किंतु कथा सुनते नहीं हैं और कई लोग दूर बैठकर भी मन कथा में ही लगाए रहते हैं। गोस्वामी जी कहते हैं कि
"सती जी कथा में केवल बैठी रहीं, कथा श्रवण नही की। केवल भगवान शंकर जी ने ही रामकथा सुनी।"
यहाँ यह स्पष्ट किया जा रहा है कि सती माता ने कथा क्यों नहीं सुनी ? इसका कारण है कि
माता सती को यह भ्रम हो गया था कि जो कथा सुनाते हैं, वे कथा वाचक तो आचार्य रूप में होते हैं, आचार्य को सब कुछ आता है । हम तो श्रोता हैं और ये तो हमे ही दंडवत करने लगे, हमें ही प्रणाम करने लगे अर्थात भगवान शिव से बड़े नहीं है, ये क्या कथा सुनाएंगे ? इस बात का उन्हें भ्रम हो गया और उन्होंने राम कथा नहीं सुनी ।
कथा पूर्ण हुई और रामचंद्र जी की भक्ति अगस्त्य मुनि को वरदान स्वरूप देकर भगवान शिव सती माता के साथ वापस आकाश मार्ग से कैलाश की ओर चले ।
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ReplyDeleteJai Shree Ram 🙏
ReplyDeleteजय श्री राम 🙏🌹
ReplyDeleteJai shree ram
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