शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
नारदजी ने पार्वती के होनेवाले वर केे विषय मेें बताना प्रारंभ किया—
"अगुन अमान मातु पितु हीना।
उदासीन सब संशय छीना।।"
अगुन — त्रिगुणातीत, अर्थात् सत, रज, तम तीनों गुणों से परे
(लेकिन हिमाचल जी समझे कि अगुन यानी बिना किसी गुण का होगा )
अमान — मान-सम्मान से परे
(किंतु हिमाचल महाराज समझे कि जगत में उसका कोई मान-सम्मान नहीं होगा ।)
मातु-पितु हीना — नारद जी ने कहा कि वह माता-पिता के बिना होगा अर्थात् वह अजन्मा होगा ।
किंतु हिमाचल जी ने समझा कि वह अनाथ होगा।
"जोगी जटिल अकाम मन , नगन अमंगल बेष।
अस स्वामी एहि कहाँ मिलिहि, परी हस्त असि रेख।।"
नारदजी ने बताया —
"आपकी पुत्री का पति जोगी होगा ; उसकी विशाल जटाएं होंगी। काम रहित होगा और उसकी कोई कामना नहीं होगी । हमेशा नंगा रहेगा , कुछ पहनेगा नहीं और अमंगल भेष बनाकर घूमेगा।"
👂 यह सुनकर हिमाचल जी व्याकुल हो उठे, बोले –
"क्या इसका कोई उपाय नहीं है?"
कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार।
देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार॥
नारद जी गंभीर होकर बोले—
"राजन! जो कुछ ब्रह्मा जी ने कन्या के ललाट पर लिख दिया है, वह अटल है।
किंतु मैंने जिन गुणों का वर्णन किया है, वे केवल शंकरजी में ही हैं।
यदि आपकी पुत्री उन्हें पति रूप में पाना चाहती है, तो उसे घोर तप करना होगा।"
नारद जी के वचनों को सुनते ही पार्वती जी ने निर्णय ले लिया।
🌿 अगले ही दिन, उन्होंने बड़ों को प्रणाम किया और वन में तपस्या करने निकल पड़ीं —
अपने आराध्य प्रभु शंकर को वर रूप में पाने हेतु।
शेष अगले पृष्ठ पर......
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Har Har Mahadev
ReplyDeleteहर हर महादेव🙏🙏 जय गौरीशंकर🙏🙏
ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDelete🙏
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