शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
गोस्वामी जी लिखते हैं —
तेहि अवसर नारद सहित अरु रिषि सप्त समेत।
समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरत निकेत॥
तभी नारद जी सप्त-ऋषियों के साथ वहाँ आए और मैना मैया को शांत कराया और कहा —
तब नारद सबही समुझावा। पूरुब कथा प्रसंगु सुनावा॥
मयना सत्य सुनहु मम बानी। जगदंबा तव सुता भवानी॥
"आपकी पुत्री तो साक्षात भगवती है, जन्म-जन्मांतर से ये शिव की अर्धांगिनी रही हैं ।पिछले जन्म में सती थीं। पिछले जन्म में मैया ने शिव जी के वचनों पर विश्वास नहीं किया । श्रीराम जी का परीक्षण करने के लिए माता सती ने माँ सीता का रूप धारण कर लिया था, इसलिए इन्हें शरीर त्यागना पड़ा । इस जन्म में भी शिवजी ही इनके पति हैं।"
इस प्रकार नारद जी के समझाने पर हिमाचल-मैना को जब पता चला कि मेरी पुत्री साक्षात माँ भवानी हैं! दोनों ने मिलकर मैया को प्रणाम कर क्षमा माँगी।
उसके बाद ब्राह्मणों के कहने पर भगवान शिवजी सुंदर पीताम्बर वस्त्र धारण कर दूल्हा रूप में लग्न मंडप में उपस्थित हुए। सखियाँ पार्वती जी को लेकर आई।
मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि।
कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियँ जानि॥
मुनियों ने सर्वप्रथम गणपति जी का पूजन कराया ।
कई लोगों के मन में यह विचार अवश्य आ रहा होगा कि विवाह से पूर्व गणपति कैसे आ गए?
(इस शंका का समाधान आवश्य होना चाहिए । प्रथम तो देवता अनंत है इनका ना आदि है ना अंत है। दूसरी बात है कि गणपति अर्थात गणों के पति, एक पद(उपाधि) है। गणेश जी विनायक से गणपति अपने माता-पिता की परिक्रमा करने के बाद हुए। इसलिए संशय व्यर्थ है।)
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ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDeleteHar har Mahadev 🙏
ReplyDeleteBeautiful
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