शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण

गोस्वामी जी लिखते हैं —
मैनाँ सुभ आरती सँवारी। संग सुमंगल गावहिं नारी॥
मैना मैया ( पार्वती मैया की माँ ) शिव जी का (दूल्हे का) द्वार-पूजन करने के लिए आरती का थाल सजा कर लाई ।
मैना मैया ने जब बाबा के अद्भुत/विचित्र रूप को देखा तो उनके हाथ से आरती की थाली वहीं गिर गई और रोती हुई वापस चली गईं।
गोस्वामी जी लिखते हैं —
मैना हृदयँ भयउ दुखु भारी। लीन्ही बोली गिरीसकुमारी॥
अधिक सनेहँ गोद बैठारी। स्याम सरोज नयन भरे बारी॥
पार्वती मैया का सिर अपनी गोद में रखकर मैना मैया विलाप करने लगी। कहने लगी कि —
कस कीन्ह बरु बौराह बिधि जेहिं तुम्हहि सुंदरता दई।
जो फलु चहिअ सुरतरुहिं सो बरबस बबूरहिं लागई॥
तुम्ह सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि महुँ परौं।
घरु जाउ अपजसु होउ जग जीवत बिबाहु न हौं करौं॥
"मैं अपनी पुत्री लेकर को पहाड़ से कूद जाऊँगी, कुएँ में जाकर छलाँग लगा लूँगी किन्तु अपनी पुत्री का विवाह इस बावले के साथ कदापि नहीं होने दूँगी।
नारद जी की मति मारी गई थी जो इस बौरे के लिए मेरी बिटिया से इतनी कठिन तपस्या करवाई!"
लगीं नारद जी को बुरा-भला कहने...
गोस्वामी जी लिखते हैं —
जनि लेहु मातु कलंकु करुना परिहरहु अवसर नहीं।
दुखु सुखु जो लिखा लिलार हमरें जाब जहँ पाउब तहीं॥
सुनि उमा बचन बिनीत कोमल सकल अबला सोचहीं।
बहु भाँति बिधिहि लगाइ दूषन नयन बारि बिमोचहीं॥
अपनी माँ को व्याकुल होते देख पार्वती जी ने कहा —
"माँ ! विधाता ने मेरे भाग्य में जो लिखा है, वही मुझे मिलेगा।चाहे मैं धरती के किसी भी कोने में रहूँ । इसमे कोई कुछ नहीं कर सकता ।आप अपने मुख से नारद जी के लिए अपशब्द बोलकर कलंक मत लीजिए।"
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Jai shree Ram
ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDeleteउमापति महादेव की जय🙏🙇
ReplyDeleteJai shree Ram
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