शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
(काशी में मोक्ष के समय शिवजी द्वारा ‘राम’ नाम का उच्चारण)
तुलसीदास जी लिखते हैं —
कासीं मरत जंतु अवलोकी। जासु नाम बल करउँ बिसोकी॥
सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी। रघुबर सब उर अंतरजामी॥
(सभी लोग काशी विश्वनाथ जी की महिमा के बारे में जानते हैं, जहाँ पर स्वयं बाबा विश्वनाथ विराजमान हैं।)
शिवजी काशी की महिमा बताते हुए कहते हैं —
"हे पार्वती !मैं वहाँ ( काशी में) सदैव विद्यमान रहता हूँ ।काशी में जब कोई जीव प्राण त्यागता है, तब मैं उसके कान में 'राम' नाम बोलता हूँ और वह जीव जीवन के आवागमन से मुक्त हो जाता है।"
(शिवजी का पार्वतीजी को काशी की महिमा और मोक्ष प्रक्रिया का वर्णन)
शिव जी कहते हैं—
"देवी! मैं किसी को मुक्त नहीं करता हूँ। मेरे मुख से जो 'राम-राम' शब्द निकलता है, उसी 'राम' नाम के प्रताप से प्रत्येक जीव जीवन के आवागमन से मुक्त हो जाता है ।"
(ऐसा कहा जाता है कि काशी में जीव का जन्म मोक्ष प्राप्ति के लिए ही होता है । इसी मान्यता के कारण काशी से गंगाजल कभी नहीं लाया जाता )
(रामनाम स्मरण के अद्भुत प्रभाव को तुलसीदास जी के शब्दों में)
तुलसीदास जी लिखते हैं —
बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं। जनम अनेक रचित अघ दहहीं॥
सादर सुमिरन जे नर करहीं। भव बारिधि गोपद इव तरहीं॥
शिवजी कहते हैं —
"देवी ! विवश होकर (बिना इच्छा के) भी जिनका नाम (राम नाम) लेने से मनुष्यों के अनेक जन्मों में किए हुए पाप समाप्त हो जाते हैं। फिर जो मनुष्य आदरपूर्वक उनका स्मरण करते हैं, वे तो संसार रूपी (दुस्तर) समुद्र को गाय के खुर से बने हुए गड्ढे के समान (अर्थात बिना किसी परिश्रम के) पार कर जाते हैं।"
(शिवजी द्वारा पार्वतीजी के भ्रम का निवारण और दृढ़ विश्वास की स्थापना)
तुलसीदास जी लिखते हैं —
राम सो परमातमा भवानी। तहँ भ्रम अति अबिहित तव बानी॥
अस संसय आनत उर माहीं। ग्यान बिराग सकल गुन जाहीं॥
शिवजी पार्वती जी का संशय समाप्त करते हुए कहते हैं —
हे पार्वती! वही परमात्मा श्री रामचन्द्रजी हैं। आपका उनमें संशय करना, संदेह प्रकट करना, और ऐसा कहना कि "रामचन्द्रजी कौन हैं?"अत्यन्त ही अनुचित है। आप जानती हैं, देवी! इस प्रकार का संदेह मन में लाते ही मनुष्य के ज्ञान, वैराग्य आदि सारे सद्गुण नष्ट हो जाते हैं।
(पार्वतीजी द्वारा अगला प्रश्न — रामजी के मानवावतार का कारण)
तुलसीदास जी लिखते हैं —
सुनि सिव के भ्रम भंजन बचना। मिटि गै सब कुतरक कै रचना॥
भइ रघुपति पद प्रीति प्रतीती। दारुन असंभावना बीती॥
शिवजी के भ्रमनाशक वचनों को सुनकर पार्वती जी ने कहा—
"नाथ! मेरा यह भ्रम तो समाप्त हो गया है लेकिन मेरा दूसरा प्रश्न है—
" राम जी सदैव मनुष्य रूप में ही क्यों अवतार लेते हैं ?"
(शिवजी पार्वतीजी के प्रश्न का उत्तर अगले भाग में देंगे)
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Jai shree ram
ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDeleteJAY Shree Ram
ReplyDeleteBahot hi saral bhasha me gahan baat bata di hai.......
Kaliyug me RAM NAM hi Moksh data hai
Jai Shri Ram
ReplyDeleteजय श्री राम
ReplyDeleteJay Shree Ram
ReplyDeleteJay shree Ram
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