शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण

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सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण प्रस्तावना: रामजन्म के अलौकिक कारण 🌟✨ (आप सभी ने इसके पहले के पृष्ठों पर भगवान रामजन्म के 5 कारण पढ़े ,जो शिवजी ने माता पार्वती को सुनाए। इन्हीं कारणों के परिणाम स्वरुप भगवान श्री राम ने अयोध्या में अवतार लिया ।) 📚 पूर्व कथाओं की झलक (पिछले भाग की लिंक) 👉 भाग 13 पढ़ें : राम अवतार का प्रथम कारण (जय-विजय का श्राप) 👉 भाग 14 पढ़ें : राम अवतार का दूसरा कारण (वृंदा का श्राप) 👉 भाग 15 पढ़ें : राम अवतार का तीसरा कारण (नारद अभिमान) 👉 भाग 24 पढ़ें : राम अवतार का चौथा कारण (मनु-शतरूपा तप)  👉 भाग 29 पढ़ें : राम अवतार का पाँचवाँ कारण (प्रतापभानु कथा) ⭐ अहल्या उद्धार के बाद श्रीराम का महाराज जनक की नगरी मिथिला में प्रवेश 🚶‍♂️ गोस्वामी जी लिखते हैं— चले राम लछिमन मुनि संगा । गए जहाँ जग पावनि गंगा ॥ गाधिसूनु सब कथा सुनाई । जेहि प्रकार सुरसरि महि आई ॥  (भगवान ने माता अहल्या जी को मोक्ष दिया और लक्ष्मणजी एवं मुनि विश्वामित्रजी के साथ आगे बढ़े। । वे वहाँ पहुँचे, जहाँ जगत को प...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग-10): ब्रह्म के निर्गुण-सगुण रूप का रहस्य और रामजी का साकार स्वरूप

 ब्रह्म के निर्गुण-सगुण रूप का रहस्य और रामजी का साकार स्वरूप : 

शिवजी पार्वतीजी को ब्रह्म के सगुण और निर्गुण स्वरूप का रहस्य समझाते हुए — शिव-पार्वती संवाद चित्र (भाग-10)

🌸 तुलसीदास जी का प्रमाण — "एक बात नहिं मोहि सोहानी"

(शिवजी ने पार्वतीजी के मोहवश कहे वाक्य पर चर्चा की)


तुलसीदास जी लिखते हैं —

एक बात नहिं मोहि सोहानी। जदपि मोह बस कहेहु भवानी॥

तुम्ह जो कहा राम कोउ आना। जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना॥

शंकर भगवान ने कहा—

"परंतु, हे पार्वती! आपकी सब बात मुझे अच्छी लगी एक बात को छोड़कर । एक बात मुझे अच्छी नहीं लगी, मैं जानता हूँ कि आपने मोह के वश होकर ही कही है। आपने जो यह कहा—


🌸 राम कोई और हैं? — मोह रूपी पिशाच से ग्रस्त जनों की मान्यता  :

(शिवजी का स्पष्ट कथन — रामजी को अलग मानना अज्ञानता है)


कौन-सी बात ?

"आपने जो यह कहा कि वे राम कोई और हैं, जिन्हें वेद गाते और मुनिजन जिनका ध्यान धरते हैं- राम जी कोई और है!" 


तुलसीदास जी लिखते हैं —

कहहिं सुनहिं अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच।

पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच॥


 "देवी! क्या आप जानती हैं कि ऐसा कौन कहता है ?"


"जो मोह रूपी पिशाच के द्वारा ग्रस्त हैं, जो धर्म को नहीं जानता, जो सत्य-असत्य को नहीं पहचानता ,जो राम से विमुख है ,वह यह कहता है कि राम जी कोई और है। राम जी काल्पनिक हैं। "


🌸 सगुण और निर्गुण में कोई भेद नहीं

(शिवजी ने वेदों और मुनियों का साक्ष्य देते हुए बताया कि ब्रह्म प्रेमवश साकार होते हैं)


तुलसीदास जी लिखते हैं —

सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥

अगुन अरूप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥


शिवजी कहते हैं—

देवी! आपने पूछा कि राम जी निराकार हैं या साकार ?

 ब्रह्म का कोई रूप नहीं है , ब्रह्म निराकार है । सगुण और निर्गुण में कुछ भी भेद नहीं है- मुनि, पुराण, पण्डित और वेद सभी ऐसा कहते हैं। लेकिन पृथ्वी पर जब भक्त उन्हें दर्शन हेतु बुलाते हैं, तब जो निर्गुण, अरूप (निराकार), अलख (अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण हो जाता है । किसी न किसी रूप में हरि आकर दर्शन देते हैं और यही उनका साकार रूप है।


🌸 निर्गुण से सगुण की उपमा — "जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें"

(बर्फ और जल की उपमा से निर्गुण-सगुण एकता का उदाहरण)


 जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें। जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें॥

शिवजी कहते हैं—

जो निर्गुण है वही सगुण कैसे है? 

जैसे जल और ओले(बर्फ) में भेद नहीं। दोनों जल ही हैं, ऐसे ही निर्गुण और सगुण एक ही हैं।


तुलसीदास जी लिखते हैं —

बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी ।।


🌸 रामजी की अलौकिक लीलाएँ — "बिनु पद चलइ, सुनइ बिनु काना"

(वेदों के दृष्टांतों से रामजी के निर्गुण-स्वरूप की महिमा का वर्णन)


तुलसीदास जी लिखते हैं —

तन बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा॥"

अस सब भाँति अलौकिक करनी। महिमा जासु जाई नहीं बरनी ।।

तन बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा॥

असि सब भाँति अलौकिक करनी। महिमा जासु जाइ नहिं बरनी॥


भगवान शंकर कहते हैं —

 "रामचंद्र जी के विषय में वेदों ने कहा है कि रघुनाथ जी  (ब्रह्म) बिना पैरों के चलते हैं ,बिना कानों के सुनते हैं, बिना हाथों के कर्म करते रहते हैं । (ब्रह्म) आनंद रहित होकर सारे सुखों को भोगते हैं ,बिना नासिका के सुगंध लेते हैं ,बिना वाणी के वक्ता है ।बिना शरीर के सब को स्पर्श करते हैं। ऋषि मुनि जिनका ध्यान करते हैं, वही भगवान श्री राम बालक बनकर अयोध्या में राजा दशरथ के आँगन में खेल रहे हैं ।"


🌸 अगले भाग में — शिवजी द्वारा रामकथा की दिव्यता का विस्तार

(शिवजी पार्वतीजी को रामचरित की अगली झलक दिखलाएंगे)

शेष अगले पृष्ठ पर....







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