शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
दैत्य जलंधर द्वारा देवताओं को पराजित करने की कथा।
तुलसीदास जी लिखते हैं —
एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलंधर सन सब हारे॥
संभु कीन्ह संग्राम अपारा। दनुज महाबल मरइ न मारा॥
परम सती असुराधिप नारी। तेहिं बल ताहि न जितहिं पुरारी॥
एक समय की बात है कि सभी देवताओं को जलन्धर दैत्य ने युद्ध में हरा दिया । देवताओं को दुःखी देखकर शिवजी ने स्वयं जलन्धर दैत्य के साथ बड़ा घोर युद्ध किया, परंतु उस महाबली दैत्य को उसकी पत्नी वृंदा के पतिव्रत के प्रभाव से मारना असंभव था ।
सती वृंदा के तेज और उसके पतिव्रत की अद्भुत शक्ति।
वृंदा जलंधर नामक दैत्य की पत्नी थी । वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी और उसके सतीत्व के प्रभाव से जलंधर का वध करना असंभव था ।
भगवान विष्णु द्वारा लीला पूर्वक देवताओं के हित में निर्णय।
अतः भगवान विष्णु ने देवताओं के हित में निर्णय लिया ।भगवान विष्णु ने छल से वृंदा का सतीत्व भंग किया और जलंधर युद्ध में मारा गया ।
वृंदा का कठोर श्राप और भगवान की सहज स्वीकृति।
तुलसीदास जी लिखते हैं —
छल करि टारेउ तासु ब्रत प्रभु सुर कारज कीन्ह।
जब तेहिं जानेउ मरम तब श्राप कोप करि दीन्ह॥
जब वृंदा को पता चला कि विष्णु ने छल किया है तब क्रोध में आकर वृंदा ने विष्णु भगवान को श्राप दे दिया —
"आपने भगवान होकर मेरे साथ छल किया है ! जिस प्रकार अपने छल करके मुझे मुझे मेरे पति से दूर किया है उसी प्रकार अगले जन्म में मेरे पति भी आपसे छल करके आपकी पत्नी को आपसे दूर करेंगे।"
श्राप से जुड़ा श्रीराम का अवतरण और रावण मोक्ष।
तुलसीदास जी लिखते हैं —
तासु श्राप हरि दीन्ह प्रमाना। कौतुकनिधि कृपाल भगवाना॥
तहाँ जलंधर रावन भयऊ। रन हति राम परम पद दयऊ॥
लीलाओं के भंडार कृपालु हरि ने वृंदा के शाप को सहज ही स्वीकार किया। इसी श्राप के कारण वही जलंधर उस कल्प/युग में रावण हुआ और भगवान को पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा । रावण को श्री रामचन्द्रजी ने युद्ध में मारकर उसे परमपद दिया ।
यह राम जी के जन्म का दूसरा कारण है।
श्रीरामचरितमानस में तुलसीदास जी की भावनापूर्ण, मर्यादित अभिव्यक्ति।
विशेष नोट 👉
तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में सभी विषयों पर लिखते समय मर्यादा का विशेष ध्यान रखा है क्योंकि श्रीरामचरितमानस ग्रंथ में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम जी के चरित का वर्णन है ।
इसलिए इस प्रसंग में 'छल से वृंदा का सतीत्व भंग' का अर्थ गलत तरह से नहीं समझना चाहिए । श्रीहरि कामरहित योगी हैं।
तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में जलंधर-वध/वृंदा का प्रसंग संक्षेप में ही लिखा है ।
श्रीराम जी के जन्म का तीसरा कारण अगले पृष्ठ पर....
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JAY Siyaram
ReplyDeleteBahot hi clear samjauta
Bahot hi clear Samjauta
ReplyDeleteJai Shree Ram 🙏
ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDeleteJai shree ram
ReplyDelete🙏🙏हर हर महादेव 🙏🙏
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