शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
तुलसीदास जी लिखते हैं —
नारद श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा॥
गिरिजा चकित भईं सुनि बानी। नारद बिष्नुभगत पुनि ग्यानी॥
भगवान शंकर पार्वतीजी को श्रीराम जी के जन्म का तीसरा कारण कहते हैं —
"देवी ! एक बार तो स्वयं नारदजी ने ही भगवान विष्णु को शाप दे दिया । अतः एक युग में उसी शाप वश श्रीराम जी का अवतार हुआ।"
कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा। का अपराध रमापति कीन्हा॥
यह प्रसंग मोहि कहहु पुरारी। मुनि मन मोह आचरज भारी॥
यह बात सुनकर पार्वतीजी बड़ी चकित हुईं और बोलीं —
"नारदजी तो विष्णु भक्त और ज्ञानी हैं । मुनि ने भगवान को शाप किस कारण से दिया, लक्ष्मीपति भगवान ने उनका क्या अपराध किया था ?"
"हे पुरारि (शंकरजी)! यह कथा मुझसे कहिए। मुनि नारद के मन में भी मोह होना बड़े आश्चर्य की बात है !"
तब महादेवजी ने हँसकर कहा—
"देवी ! न कोई ज्ञानी है न मूर्ख। श्री रघुनाथजी जब जिसको जैसा करते हैं, वह उसी क्षण वैसा ही हो जाता है ।"
इसलिए मान और मद को छोड़कर आवागमन का नाश करने वाले रघुनाथजी को भजना चाहिए।
भगवान शंकर बोले—
एक बार नारदजी हिमालय पर्वत पहुँचे । वहाँ एक बड़ी पवित्र गुफा थी। उसके समीप ही सुंदर गंगाजी बहती थीं। वह परम पवित्र सुंदर आश्रम नारदजी के मन को बहुत ही सुहावना लगा ।
भगवान के अनन्य भक्त होने के कारण नारद जी पर श्रीहरि की विशेष कृपा थी । नारद जी ने वहीं समाधि लगा ली ।
देवराज इन्द्र ने कामदेव को नारद जी की तपस्या भंग करने के लिए भेजा किन्तु श्रीहरि की कृपा से नारद जी पर कोई असर नहीं हुआ।
जब नारद जी की तपस्या पूर्ण हुई तो नारद जी को लगा कि मेरे अंदर इतना पुरुषार्थ है कि मैंने कामदेव को हरा दिया। उन्हें लगा कि मैने तपस्या पूर्ण कर ली और उन्हें इसी बात का घमंड हो गया ।
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ReplyDeleteजय श्री हनुमान 🙏
Jai Shree Ram 🙏
ReplyDeleteJai shree Ram
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