शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि ।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ॥ १
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम् ॥ २ ॥
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम् ।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते ॥ ३ ॥
सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ ॥ ४ ॥
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम् ।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ॥ ५ ॥
यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः ।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम् ॥ ६ ॥
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि ।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति ॥ ७ ॥
श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने सात काण्ड लिखें हैं। काण्ड का अर्थ है- सोपान/भाग । सबसे पहले बालकाण्ड के प्रारंभ में पूज्यपाद गोस्वामी जी ने सात श्लोकों की रचना की है। महापुरुषों का चिंतन है कि सात ही श्लोक क्यों लिखे गए?
क्योंकि सात काण्ड है इसलिए गोस्वामी जी ने एक-एक काण्ड का स्मरण करके एक-एक श्लोक की रचना की है।
* प्रथम श्लोक में गोस्वामी जी ने एक ही साथ गणपति जी और सरस्वती मैया दोनो को वंदन किया है।
कारण: गणपति विघ्नहर्ता और सरस्वती ज्ञान की देवी हैं, जो रचना के प्रारंभ में शुभता और बुद्धि प्रदान करते हैं।
* दूसरे श्लोक में तुलसीदास जी ने भगवान शंकर और माता पार्वती की साथ में वंदना की है ।
शंकर-पार्वती जी की वंदना क्यों की गई ? क्योंकि श्री रामचरितमानस की रचना भगवान शंकर ने की है । तुलसीदास जी कहते हैं-
"रचि महेश निज मानस राखा ।पाई सुसमय शिवासन भाखा ।।"
अर्थात भगवान शिव ने इस मानस की रचना की और रचना करके अपने मानस अर्थात मन में रख लिया और यह भगवान राम का चरित्र जो शिव जी ने अपने मन में रखा वह बाहर कैसे निकाला ?
माता पार्वती के कारण; पूरे जगत का कल्याण करने के लिए माता पार्वती ने कृपा की सब जीवों पर और भगवान शंकर से प्रार्थना करके इस कथा रूपी गंगा को प्रवाहित करवाया।
इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो भगवान शंकर इस कथा के आचार्य हैं इसलिए गोस्वामी जी ने माता पार्वती और शिवजी की वंदना की।
* तीसरे श्लोक में गोस्वामी जी ने भगवान शिव के जगद्गुरु स्वरूप में वंदना की है।
* चौथे श्लोक में गोस्वामी जी ने ऋषि वाल्मीकि जी और हनुमान जी की वंदना की है ।
कारण: वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की, और हनुमान जी भगवान श्रीराम के परम भक्त हैं, जो कथा के प्रसार में महत्वपूर्ण हैं।
5. पंचम श्लोक: सीता माता की वंदना :
* पांचवें श्लोक में गोस्वामी जी ने जगजननी सीता मैया की वंदना की है ।
कारण: सीता रामकथा की केंद्रबिंदु और शक्ति का प्रतीक हैं।
* छठे श्लोक में गोस्वामी जी ने श्रीराम जी की वंदना की है।
कारण: श्रीराम जी इस कथा के नायक और समस्त चरित्र के आधार हैं।
* सातवें श्लोक में गोस्वामी जी इस बात की घोषणा करते हैं कि मैंने कैसे इस ग्रंथ की रचना की ? 18 पुराण, 4 वेद और 6 शास्त्र और इनके अलावा संसार में जितनी रामायण है -
100 करोड़ से ऊपर रामायण हैं और जितने ग्रंथ (रामायण) मुझे प्राप्त हुए हैं , उन सभी ग्रंथों को मैंने पढ़ा और पढ़ने के बाद उन सब के सारांश को निचोड़ कर, मैंने श्री रामचरितमानस की रचना की है।
(यह मत समझिएगा कि रामकथा सिर्फ रामचरितमानस में ही लिखी गयी है। श्रीमद् वाल्मीकि रामायण में लिखी गई है,अध्यात्म रामायण में लिखी गयी है, आनंद रामायण में लिखी गई है,कंभ रामायण में लिखी गयी है )
तुलसीदास जी कहते हैं-"रामायण सतकोटि अपारा"
महत्व : इस का अर्थ है कि हम सभी यदि केवल रामचरितमानस को पढ़ने का स्वभाव बना लें तो सभी ग्रंथों के पढ़ने का फल हमें स्वतः प्राप्त हो जाएगा । इसमें कोई संशय नहीं है।
सबकी वंदना करने के बाद तुलसीदास जी कथा को तीर्थराज प्रयाग के दूसरे घाट पर ले जाते हैं....
प्रतीकात्मकता: प्रयाग आध्यात्मिक संगम का प्रतीक है, जहाँ कथा का प्रवाह और गहरा होता है।
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📖 याज्ञवल्क्य-भारद्वाज संवाद: राम कौन हैं?
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