शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
सती मैया के झूठ बोलने से शिवजी को आघात लगा और उन्होंने मन में ही सती को त्यागने संकल्प ले लिया । बाबा ने अपने संकल्प को सती मैया को नहीं बताया और कैलाश पर्वत पर जाकर बाबा सीधे समाधि में प्रवेश कर गए।
गोस्वामी जी लिखते हैं –
बीते संवत सहस सतासी ।तजि समाधि संभु अबिनासी।।
राम नाम शिव सुमिरन लागे ।जानेहु सती जगत पति जागे।।
87000 वर्ष समाधि में रहने के पश्चात भगवान शिव ने नेत्र खोले और मुख से 'राम' नाम शब्द का उच्चारण किया । सती मैया के कान में 'राम- राम' शब्द सुनाई दिया, माता जान गई कि भगवान शंकर समाधि से वापस आए हैं।
जाइ शंभु पद बंदन कीन्हा । सनमुख संकर आसन दीन्हा।।
सती मैया दौड़कर गई और जाकर शिवजी चरणों में प्रणाम किया । शिवजी ने अपने सामने मैया को आसन दिया है।
(यहाँ यह बात स्पष्ट की जा रही है कि अर्धांगिनी का स्थान सदैव पति के बायीं ओर होता है । किंतु पूजन करते समय अर्धांगिनी को सदैव पति के दायीं ओर रहना चाहिए)
किन्तु भगवान शंकर ने आज सती को अपने बायीं ओर नहीं बिठाया । क्योंकि सती मैया बाबा के बायीं ओर बैठने का अपना अधिकार खो चुकी हैं । इसलिए बाबा ने अपने सामने बिठाया है।
लगे कहन हरि कथा रसाला । दक्ष प्रदेश भए तेहि काला।।
सती मैया को अपने सामने बिठाकर शिवजी मैया को रामकथा सुनाने लगे।
उसी समय दक्ष के प्रदेश/ दक्ष के राज्य में कुछ घटनाएँ घट रही थीं।
देखा विधि विचार सब लायक ।दक्षहि कीन्ह प्रजापति नायक।।
बड़ अधिकार दक्ष जब पावा। अति अभिमान ह्रदय तब आवा।।
नहिं कोउ अस जन मा जग माही।प्रभुता पाइ जाइ मद जाही।।
उसी समय एक घटना घटी । सती मैया के पिता का नाम है, महाराज दक्ष। ब्रह्माजी ने दक्ष को सभी प्रजापतियों का राजा बना दिया और जैसे ही दक्ष को बड़ा अधिकार प्राप्त हुआ , उन्हें अभिमान हो गया।
दक्ष अपने जामाता (दामाद) भगवान शंकर को ही अपना शत्रु मानते थे।
क्यों शत्रु मानते थे? कारण है –
एक बार ब्रह्मा जी के यहाँ सभा में सभी देवतागण उपस्थित हुए। राजा दक्ष को देखकर सभी देवगण खड़े हुए और उनका सम्मान किया।
किंतु ब्रह्मा, विष्णु, महेश – ये तीनों देव नहीं खड़े हुए।
दक्ष समझे कि ब्रह्मा और विष्णु तो ठीक है, लेकिन शिव तो मेरे दामाद हैं और मैं इनका ससुर हूँ। शिव को तो मेरे सम्मान में खड़ा होना चाहिए था ।
किंतु शंकर ने मेरा अपमान किया है।
जैसे ही दक्ष को अधिकार मिला, भगवान शंकर को अपमानित करने के लिए दक्ष ने एक विशेष यज्ञ का आयोजन किया।
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हर हर महादेव🙏
ReplyDeleteJai Shree Ram 🙏
ReplyDeleteजय सियाराम 🙏जय बजरंगबली की 🙏 हर-हर महादेव 🙏
ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDeleteJai jai shree ram
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