शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
प्रजापतियों का राजा बनते ही दक्ष ने भगवान शंकर को अपमानित करने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में दक्ष ने सभी देवताओं को निमंत्रण दिया, किंतु अपने दामाद शिव जी और पुत्री सती को निमंत्रण नहीं दिया।
सती मैया को जब पता चला, तो उन्होंने बाबा से पिता के घर जाने की अनुमति मांगी।
शिवजी ने समझाया -
"हमें निमंत्रण नहीं दिया गया है, इसलिए हमें वहाँ नहीं जाना चाहिए।"
(जीवन में चार स्थान पर बिना बुलाए चले जाना चाहिए: पिता के घर, सद्गुरु के घर, स्वामी के घर और मित्र के घर। इन चार स्थानों पर निमंत्रण नहीं ढूँढना चाहिए।
किंतु यदि अपमानित करने के लिए निमंत्रण न दिया गया हो, तो ऐसी जगह पर कदापि नहीं जाना चाहिए )
बाबा ने बार-बार मना किया, समझाया किंतु इस बार फिर सती मैया ने बाबा की बात नहीं मानी।
अंत में बाबा ने अपने मुख्य गणों के साथ सती मैया को उनके पिता दक्ष के घर भेज दिया।
माता सती जब पिता के घर पहुँचीं, तो किसी ने भी सती की ओर देखा तक नहीं। उनकी सभी बहनें उपहास की दृष्टि से देखती रहीं।
केवल सती मैया की माता ने उन्हें दौड़कर गले लगाया और उन्हें यज्ञ मंडप में लेकर गई ।
जब सती मैया ने यज्ञ मंडप में देखा कि सभी देवताओं को स्थान दिया गया है, सिर्फ उनके पति देवाधिदेव शंकर जी को स्थान नहीं दिया गया है, तो मैया ने क्रोध में विकराल रूप धारण कर देवताओं से कहा —
> "हे देवगण, मुनिगण! इस सभा में बैठकर आप में से जिसने-जिसने भी मेरे पति की निन्दा की है या निन्दा श्रवण मात्र भी की है, उन सबको दंड मिलेगा।"
संत संभु श्रीपति अपबादा। सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा॥
काटिअ तासु जीभ जो बसाई। श्रवन मूदि न त चलिअ पराई॥
(मर्यादा कहती है कि जिस सभा में संत की, शंभु की और श्री हरि की निंदा हो रही हो, यदि भुजाओं में बल हो तो उस निंदा का विरोध किया जाना चाहिए, और यदि शक्ति न हो तो चुपचाप कान बंद करके उस सभा से उठकर चले जाना चाहिए।)
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ReplyDeleteJai Shree Ram
ReplyDeleteJai Bhole Nath
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