शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
बाबा ने माता पार्वती को देखा और—
तुलसीदास जी लिखते हैं —
जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा। बाम भाग आसनु हर दीन्हा॥
बैठीं सिव समीप हरषाई। पूरुब जन्म कथा चित आई॥
अपनी प्रिया जानकर, शिव जी ने माँ भवानी को बहुत आदर के साथ अपने बायीं ओर बैठने के लिए आसन दिया।पार्वती जी प्रसन्न होकर शिवजी के पास बैठ गईं। तब पार्वती जी को पिछले जन्म की कथा स्मरण हो आई ।
इससे पहले पूर्व जन्म में बाबा ने सती को अपने सामने बिठाया था, क्योंकि उन्होंने श्री राम जी की परीक्षा लेने हेतु माता सीता का रूप धारण किया था और शिवजी सीता जी को माता के रूप में पूजते हैं । इसलिए उन्होंने सती को मानसिक रूप से त्याग दिया था।
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अब बाबा ने पार्वती जी को अपने बायीं ओर बिठाया । खोया हुआ स्थान प्राप्त हुआ, तो माता गदगद हो गईं ।
तुलसीदास जी लिखते हैं —
पति हियँ हेतु अधिक अनुमानी। बिहसि उमा बोलीं प्रिय बानी॥
कथा जो सकल लोक हितकारी। सोइ पूछन चह सैल कुमारी॥
उसके बाद शंकर भगवान ने पूछा —
"देवी! आप क्या कहना चाहती हैं?"
अपने पति शिव जी के हृदय में पहले की अपेक्षा अधिक प्रेम समझकर पार्वती जी हँसकर बोलीं—
(याज्ञवल्क्य जी के कथनानुसार)
"जो राम कथा सब लोगों का हित करने वाली है, उसे ही आज मै पूछना चाहती हूँ ।"
तुलसीदास जी लिखते हैं —
बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी॥
चर अरु अचर नाग नर देवा। सकल करहिं पद पंकज सेवा॥
भवानी बोली—
"प्रभु!आप तो पूरे विश्व के नाथ हैं। मेरे भी नाथ हैं। चर-अचर, देवता,नाग आदि सभी आपकी सेवा करते हैं। आप प्रभु हैं, समर्थवान हैं,समस्त कलाओं के गुणों की खान है। आप मेरी प्रार्थना स्वीकार कीजिए। मेरे भ्रम को समाप्त कर दीजिए। "
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Jai shree Ram
ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDeleteजय श्री राम। ॐ नमः शिवाय। 🙏
ReplyDeleteNice one
ReplyDeleteJai Shri Raam
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