शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
📖 पूर्व कथा की स्मृति :
यदि आपने पढ़ा हो , तो मैंने याज्ञवल्क्य और भारद्वाज मुनि के संवाद में लिखा है कि भारद्वाज मुनि ने याज्ञवल्क्य ऋषि से प्रश्न पूछा था—
"हे मुनिवर! ये राम जी कौन हैं?"
इसका कारण है —
तुलसीदास जी लिखते हैं —
सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं॥
बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू। राम भगत कर लच्छन एहू॥
अर्थात शिवजी के चरण कमलों में जिनकी प्रीति नहीं है, वे श्री रामचन्द्रजी को सपने में भी अच्छे नहीं लगते। विश्वनाथ श्री शिवजी के चरणों में निष्कपट (विशुद्ध) प्रेम होना यही रामभक्त का लक्षण है॥
भगवान शिव विश्वास के प्रतीक हैं और माँ भवानी श्रद्धा की प्रतिमूर्ति हैं। जीवन में जब तक श्रद्धा और विश्वास नहीं होगा, भगवान राम की कथा मन में प्रवेश कर ही नहीं सकती है।
(इसलिए श्री राम तक पहुँचने के लिए पहले शिव जी (हनुमानजी) की कृपा की आवश्यकता होती है। )
देखिये 'राम राम' शब्द का उच्चारण सोते,जागते,उठते,बैठते कहीं भी, कोई भी कर सकता है किन्तु यदि भगवद कथा की बात आ जाए तब—
तुलसीदास जी लिखते हैं —
"राम कथा के तेइ अधिकारी | जिन्ह के सत संगति अति प्यारी।।"
अर्थात राम-कथा मे रुचि उन्हीं लोगों में होगी, जिनकी संगत अच्छी होगी और बिना राम जी की कृपा प्राप्त हुए अच्छी संगत प्राप्त नहीं हो सकती ।
इसीलिए
याज्ञवल्क्यजी जानना चाहते थे कि भारद्वाज जी राम कथा सुनने के अधिकारी हैं कि नहीं है।भारद्वाज जी को सत्संग से प्रेम है कि नहीं...
📌 यह भाग शिव-पार्वती संवाद की भूमिका है — जहाँ से श्रीरामकथा की आध्यात्मिक-यात्रा शुरू होती है।
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Jai shree Ram
ReplyDelete🙏🙏हर हर महादेव 🙏🙏
ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDelete🙏
Delete'राम राम'
ReplyDeleteI have good friends means Shree Ramji ki kripa hai
ReplyDelete❤️
Delete🙏
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