शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
इसी बीच एक दैत्य ने जन्म लिया। जिसका नाम था ताड़कासुर। ताड़कासुर ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान ले लिया—
शिव-शक्ति के तेज से जो संतान उत्पन्न होगी, उसके हाथों उसकी मृत्यु होगी।
ब्रह्मा जी से वरदान लेने के बाद ताड़कासुर ने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया । इन्द्र देवताओं को लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुँचे । ब्रह्माजी ने ताड़कासुर के वध से संबंधित बात बताई और कहा—
"शिव जी के विवाह हेतु कन्या तैयार है ।आप सभी शिव जी को समाधि से बाहर वापस लाइए।"
जैसे ही बाण बाबा के हृदय में लगे, बाबा ने अपने नेत्र खोल दिये। शिव जी ने दायें-बायें देखा और फिर —
सौरभ पल्लव मदनु बिलोका। भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका॥
तब सिवँ तीसर नयन उघारा। चितवन कामु भयउ जरि छारा॥
हाहाकार भयउ जग भारी। डरपे सुर भए असुर सुखारी॥
जैसे ही बाबा ने कामदेव को देखा, उनका तीसरा नेत्र खुल गया। बाबा का तीसरा नेत्र खुलते ही कामदेव जलकर वहीं भस्म हो गए। हाहाकार मच गया। देवता घबरा गए , दैत्य प्रसन्न हो गए।
जोगी अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई।
रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई॥
अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही।
प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही॥
और कामदेव की पत्नी रति रोती हुई भगवान शिव के पास गई। बाबा को दया आई और बोले— रति!
अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु।
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु॥
अर्थात "आज से आपके पति का नाम अनंग (बिना शरीर का) होगा और वह बिना शरीर के सभी में व्याप्त होंगे।"
रति ने पूछा—"मुझे कब मिलेंगे?"
जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा॥
कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा॥
तब शंकर जी ने कहा—
"द्वापर में पृथ्वी के बड़े भारी भार को उतारने के लिए यदुवंश में जब श्री कृष्ण अवतार लेंगे, तब उनके पुत्र प्रद्युम्न आपको पति के रूप में पुनः प्राप्त होंगे, इसमे कोई संशय नहीं है।"
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Jai Shree Ram 🙏
ReplyDeleteहर-हर महादेव 🙏
ReplyDeleteजय सियाराम 🙏
जय हनुमान 🙏
Jai shree Ram
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