शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
अपने आराध्य प्रभु शंकर को वर रूप में पाने हेतु पार्वती मैया वन में तपस्या करने निकल पड़ी और हजारों वर्ष तक तपस्या की । हजारों वर्ष तपस्या करने के उपरांत आकाशवाणी हुई —
"भवानी जी! आपकी तपस्या पूर्ण हुई, आपके मन में जो वर रचा है , वह अवश्य प्राप्त होगा । अब आप घर लौट जाइए ।"
इधर सती मैया के शरीर त्यागने के बाद बाबा को वैराग्य हो गया। शिवजी वैरागी बन, इधर-उधर घूमने लगे ।
एक दिन भगवान श्री राम जी बाबा के सामने प्रकट हुए और कहा —
"यदि आप मुझे सत्य में प्रेम करते हैं , तो जो मैं मांगूंगा वह आप मुझे देंगे?"
बाबा ने कहा— "कहिए प्रभु! क्या चाहिए?"
राम जी बोले — "जाइये और शैलपुत्री से विवाह कीजिए।"
अब बिनती मम सुनहु सिव जौं मो पर निज नेहु।
जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु॥
कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं॥
सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा। परम धरमु यह नाथ हमारा॥
शिवजी ने कहा— यद्यपि ऐसा उचित नहीं है, परन्तु स्वामी की बात भी टाली नहीं जा सकती। हे नाथ! मेरा यही परम धर्म है कि मैं आपकी आज्ञा को सिर पर रखकर उसका पालन करूँ॥
शिव जी ने पहले तो मना कर दिया किन्तु अपने स्वामी की आज्ञा मानकर विवाह के लिए मान गए।
पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु।
गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु संदेहु॥
उसके बाद भगवान शंकर ने सप्त ऋषियों को भेज कर पार्वती जी की प्रेम निष्ठा जानी ।
पार्वती जी की प्रेम निष्ठा जानकर शिवजी फिर से समाधि में चले गए पिछली बार समाधि में गए थे तो 87 हजार वर्ष बाद समाधि से लौटे थे। अब समाधि से कब लौटेंगे? यह किसी को नहीं पता.....
शेष अगले पृष्ठ पर.....
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Jai shree Ram
ReplyDeleteजय श्री सियाराम 🙏
ReplyDeleteजय श्री हनुमान 🙏
उमापति महादेव की जय हो 🙏
🙏
ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDelete🙏🙏
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