शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
शिव जी माँ पार्वती को भगवान राम के अवतार का चौथा कारण सुनाते हैं —
चौथे कारण में सृष्टि के आदि माता-पिता स्वयंभू मनु और माता शतरूपा का तप और उनको मिले वरदान की कथा है।
विशेष-
स्वयंभू मनु और माता शतरूपा सृष्टि के आदि माता- पिता हैं। मनुजी के 2 पुत्र हुए- बड़े पुत्र का
नाम उत्तानपाद था; जिनके पुत्र (प्रसिद्ध) हरिभक्त ध्रुवजी हुए और छोटे पुत्र का नाम प्रियव्रत था । जिनकी प्रशंसा वेद और पुराण करते हैं।
देवहूति मनु और माता शतरूपा की ही कन्या थी, जो कर्दम मुनि की प्रिय पत्नी हुई और जिन्होंने आदि देव, दीनों पर दया करने वाले समर्थ एवं कृपालु भगवान कपिल को गर्भ में धारण किया ।
सृष्टि के आदि माता-पिता स्वयंभू मनु और माता शतरूपा ने नैमिषारण्य मे 23000 वर्षो तक तपस्या की ।
गोस्वामी जी लिखते हैं —
अस्थिमात्र होइ रहे सरीरा। तदपि मनाग मनहिं नहिं पीरा॥
तपस्या करते-करते उन दोनों का शरीर सिर्फ हड्डियों का ढाँचा रह गया। फिर भी बिना किसी पीड़ा के तपस्या करते रहे।
प्रभु सर्बग्य दास निज जानी।गति अनन्य तापस नृप रानी।।
मागु मागु बर भै नभ बानी। परम गभीर कृपामृत सानी।।
23000 वर्षों की कठोर तपस्या को देखने के बाद, भगवान श्रीहरि मनु और माता शतरूपा को अपना अनन्य भक्त जानकर, प्रसन्न हुए और आकाशवाणी हुई —
‘वर माँगो, वर माँगो'
शेष भाग अगले पृष्ठ पर.......
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Jai shree Ram
ReplyDeleteTap ka prabhav hi aisa tha ki Prabhu ko pragat hona pade .....JAY Siyaram 🙏
ReplyDeleteJai shree Ram
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