शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
गोस्वामी जी लिखते हैं —
"हृष्ट-पुष्ट तन भए सुहाए । मानहु अबहि भवन ते आए।।"
भगवान की मधुर आवाज मनु और माता शतरूपा के कानों में पड़ी और जैसे ही भगवान की आवाज उनके कानों में पड़ी, स्वयंभू मनु जी ने आँखें खोली । उन्होंने महसूस किया कि उन दोनों के शरीर हृष्ट-पुष्ट हो गए हैं । मानो अभी-अभी अपने महल से आए हों।
शतरूपा जी से मनु जी बोले —
"जिसकी आवाज से हमारे अंदर इतना बदलाव आ गया,यदि वह दिखलाई पड़ जाए, तो कितना बदलाव होगा!"
मनु जी कहानियों में सुना करते थे कि भगवान शिव, श्रीराम जी को अपने हृदय में रखते हैं और कागभुसुंडी जी श्रीराम को अपने मन में रखते हैं ।
( भगवान शिव जी भगवान राम के बाल-स्वरूप को अपने हृदय में रखते हैं। मनु जी को प्रभु के उसी बाल- स्वरूप का दर्शन करने की इच्छा जागृत हुई।)
गोस्वामी जी लिखते हैं —
जो सरूप बस सिव मन माहीं। जेहिं कारन मुनि जतन कराहीं॥
जो भुसुंडि मन मानस हंसा। सगुन अगुन जेहि निगम प्रसंसा॥
इसलिए मनु जी बोले —
"प्रभु !हम अपनी आँखों से आपका वह रूप देखना चाहते हैं ,जो रूप भगवान शिव के हृदय में और काकभुशुण्डि के मन में रहता है और जिसकी प्राप्ति के लिए मुनि लोग यत्न करते हैं ।"
मनु जी की बात सुनकर भी श्री रघुनाथ जी ने उन्हें अपने बालस्वरूप मे दर्शन नहीं दिए । श्री रघुनाथ जी, किशोरी सीता मैया के साथ में प्रकट हो गए।
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ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDeleteJay shree Siyaram 🙏
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