शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
यह कथा शिव जी माँ पार्वती को सुना रहे हैं —
मनु जी की बात सुनकर भी श्री रघुनाथ जी ने उन्हें अपने बालस्वरूप मे दर्शन नहीं दिए । श्री रघुनाथ जी, किशोरी सीता मैया के साथ में प्रकट हो गए।
गोस्वामी जी लिखते हैं —
"नील सरोरुह नील मनि , नील नीरधर स्याम।
लाजहिं तन सोभा निरखि ,कोटि कोटि सत काम॥"
भगवान के नीले कमल, नीलमणि और नीले मेघ (जलयुक्त बादल) के समान कोमल, प्रकाशमय और सरस श्यामवर्ण शरीर की शोभा देखकर करोड़ों कामदेव भी लजा जाते हैं।
गोस्वामी जी लिखते हैं —
चितवहीं सादर रूप अनूपा । तृप्ति ना मानहीं मनु सतरूपा।।
"मनु जी और शतरूपा जी प्रभु के रूप में खो गए। दोनो सोचने लगे कि बड़े हैं तो इतने सुंदर हैं, छोटे होंगे तो कितने सुंदर दिखेंगे!"
मनुजी बोले —
"प्रभु!हम आपसे कुछ और भी माँगना चाहते हैं।"
प्रभु बोले —
"निसंकोच माँगिए।"
(मनु जी जगत के पिता को अपना पुत्र बनाना चाहते हैं लेकिन वे यह तो कह नहीं सकते कि आप मेरे पुत्र बन जाइए।)
इसलिए उन्होंने वरदान माँगा —
"मुझे आपके जैसा पुत्र चाहिए।"
भगवान बोले —
"अपने जैसा कहाँ ढूँढने जाऊँगा ? मैं आपको वचन देता हूँ कि मै ही आपके घर पुत्र के रूप मे अवतार लूँगा।"
( स्वयंभू मनु और माता शतरूपा अगले जन्म में चक्रवर्ती राजा दशरथ और माता कौशल्या हुए। भगवान श्रीराम उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त हुए। )
यह भगवान राम के जन्म का चौथा कारण है ।
भगवान राम के जन्म का पाँचवा कारण अगले पृष्ठ पर...
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