शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
नारद जी राजकुमारी विश्वमोहिनी से विवाह करने के लिए व्याकुल हो उठे किंतु राजकुमारी विश्वमोहिनी से विवाह करने के लिए नारद जी के पास एक राजकुमार की तरह सुंदर रूप-रंग, वस्त्र-आभूषण तो थे नहीं।
सोचने लगे—
"इतनी जल्दी तो कहीं से भी व्यवस्था नहीं हो पाएगी ।"
हरि सन मागौं सुंदरताई। होइहि जात गहरु अति भाई॥
मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहि अवसर सहाय सोइ होऊ॥
"(एक काम करूँ कि) श्री हरि से सुंदरता माँगूँ । श्री हरि के समान मेरा हितैषी कोई नहीं है, इसलिए इस समय वे ही मेरे सहायक अवश्य होंगे ।"
नारद जी जहाँ थे, उसी स्थान पर श्री हरि को पुकारने लगे ।पुकार सुनकर प्रभु प्रकट हो गए।
आपन रूप देहु प्रभु मोहीं। आन भाँति नहिं पावौं ओही॥
श्री हरि को सामने देखकर नारद जी ने प्रभु को प्रणाम किया और प्रार्थना की—
"हे नाथ! कृपा कीजिए और कृपा करके मेरे सहायक बनिए। प्रभु! मुझे एक दिन के लिए अपना यह रूप मुझे उधार दे दीजिए।"
भगवान ने पूछा —
"क्यों ? नारद जी आपको इसकी क्या आवश्यकता है?"
(नारद जी ने पूरी कहानी सुनाई)
नारद जी बोले —
"प्रभु! वह राजकुमारी विश्वमोहिनी है और आप विश्वमोहन हैं । मुझे विश्वमोहिनी से विवाह करना है । मैं विश्वमोहन का रूप लेकर जाऊँगा, तो विश्वमोहिनी मेरे ही गले में जयमाल डाल देगी। इसलिए मुझे आपका रूप चाहिए। विश्वमोहिनी से विवाह होते ही, मैं आपका रूप आपको वापस कर दूँगा। किसी और प्रकार से मैं उस राजकन्या को नहीं पा सकता ।"
जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा। करहु सो बेगि दास मैं तोरा॥
शेष अगले पृष्ठ पर....
पिछला भाग (भाग 17) पढ़ने के लिए क्लिक करें
अगला भाग (भाग 19) पढ़ने के लिए क्लिक करें →
🔹 पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद।
📖 कृपया अपनी प्रतिक्रिया पोस्ट पेज पर ही कमेंट के रूप में साझा करें 🙏
💬 आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए महत्वपूर्ण है।
📤 कमेंट करें | साझा करें।
Om namah shivay 🙏
ReplyDelete