शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
🔗 श्रीराम जी के अवतार का पहला व दूसरा कारण 👇
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नारद जी श्रीहरि से विश्वमोहन का रूप वरदान स्वरूप माँगकर विश्वमोहनी के स्वयंवर में पहुँचे ।
आगे की कथा प्रारंभ करते हैं —
भगवान ने नारद जी को अपना रूप तो दे दिया किंतु चेहरा वानर का दे दिया और इस बात का नारद जी को तनिक भी पता नहीं चला ।भगवान ने साथ-साथ चुपके से शिव जी के दो गण भी नारद जी के पीछे-पीछे भेज दिए।
वे दोनो गण नारदजी को सुना-सुनाकर, व्यंग्य वचन कहने लगे—
"भगवान ने इनको इतनी अच्छी ‘सुंदरता’ दी है। इनकी शोभा देखकर राजकुमारी इनकी ओर खिंची चली जाएगी और ‘हरि’ (वानर) जानकर इन्हीं को खास तौर से जयमाल पहनाएगी।"
विशेष - ‘हरि’ शब्द के दो अर्थ होते हैं—
👉 1- भगवान विष्णु जी 2- वानर
नारद जी भ्रम में थे, श्रीहरि ने वास्तव में विश्वमोहन का रूप उन्हें दे दिया है । इसलिए व्यंग्य वचन समझ नहीं पाए।
तुलसीदास जी लिखते हैं —
धरि नृपतनु तहँ गयउ कृपाला। कुअँरि हरषि मेलेउ जयमाला॥
दुलहिनि लै गे लच्छिनिवासा। नृपसमाज सब भयउ निरासा॥
इतना ही नहीं ,स्वयं श्रीहरि भी राजकुमार बनकर माया के नगर में चले गए । माया की राजकुमारी विश्वमोहिनी ने मायापति विष्णु जी के गले में ही जयमाला डाल दी और विष्णु जी विश्वमोहिनी को अपने साथ ले गए।
मोह के कारण नारद मुनि की बुद्धि नष्ट हो गई थी, इससे वे (राजकुमारी को गई देख) बहुत ही व्याकुल हो गए। तभी शिवजी के गणों ने मुस्कुराकर कहा—
"जाकर दर्पण में अपना मुँह तो देखिए!"
तुलसीदास जी लिखते हैं —
अस कहि दोउ भागे भयँ भारी। बदन दीख मुनि बारि निहारी॥
बेषु बिलोकि क्रोध अति बाढ़ा। तिन्हहि सराप दीन्ह अति गाढ़ा॥
ऐसा कहकर वे दोनों गण बहुत भयभीत होकर वहाँ से भागे। गणों के कहने पर नारद मुनि ने जल में झाँककर अपना मुँह देखा। स्वयं का रूप और वानर-मुख देखकर उनका क्रोध बहुत बढ़ गया। उन्होंने शिवजी के उन गणों को अत्यन्त कठोर श्राप दिया—
होहु निसाचर जाइ तुम्ह कपटी पापी दोउ।
हँसेहु हमहि सो लेहु फल बहुरि हँसेहु मुनि कोउ॥
"तुम दोनों कपटी और पापी जाकर राक्षस हो जाओ। तुम दोनों ने हमारी हँसी की, उसका फल चखो। अब फिर किसी मुनि की हँसी ना करना।"
तुलसीदास जी लिखते हैं —
पुनि जल दीख रूप निज पावा। तदपि हृदयँ संतोष न आवा॥
फरकत अधर कोप मन माहीं। सपदि चले कमलापति पाहीं॥
नारद मुनि ने जल में फिर से स्वयं को देखा, तो उन्हें अपना स्वयं का (असली) रूप प्राप्त हो गया, तब भी उन्हें संतोष नहीं हुआ। उनके होठ फड़क रहे थे और मन में क्रोध (भरा) था। क्रोधित नारद मुनि तुरंत ही वहाँ से भगवान कमलापति के पास चले.......
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Jai shree Ram
ReplyDeleteJay ho shiv shankar 🙏
ReplyDeleteJai shree Ram 🙏
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