शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
👉जानकारी के लिए स्पष्ट किया जा रहा है —
श्रीरामचरितमानस जी को समझने के लिए कथा के प्रारंभ से जुड़े रहना चाहिए । तभी श्रीराम जी के चरित्र की कथा का पूर्ण रूप से आनंद प्राप्त होगा ।
भगवान श्रीराम जी के चरित्र की कथा श्री याज्ञवल्क्य मुनि, भारद्वाज मुनि जी को सुना रहे हैं —
बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा॥
मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥
अर्थात पराए धन और पराई स्त्री पर मन चलाने वाले, दुष्ट, चोर और जुआरी बहुत बढ़ गए। लोग माता-पिता और देवताओं को नहीं मानते थे और साधुओं की सेवा करना तो दूर रहा, उल्टे उनसे सेवा करवाते थे ।
जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी॥
अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी। परम सभीत धरा अकुलानी॥
श्री शिवजी कहते हैं कि —
हे भवानी! जिनके ऐसे आचरण होते हैं, उन सब प्राणियों को राक्षस ही समझना चाहिए। इस प्रकार धर्म के प्रति लोगों की अरुचि, अनास्था देखकर पृथ्वी अत्यन्त भयभीत एवं व्याकुल हो गई ।
धरती मैया सोचने लगी कि पर्वतों, नदियों और समुद्रों का बोझ मुझे इतना भारी नहीं जान पड़ता, जितना भारी अधर्म का बोझ है पर रावण से भयभीत थी इसलिए वह कुछ बोल नहीं सकती थीं।
धेनु रूप धरि हृदयँ बिचारी। गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी॥
निज संताप सुनाएसि रोई। काहू तें कछु काज न होई॥
रावण के अत्याचार से आतंकित हो, अंत में हृदय में सोच-विचारकर, धरती मैया गाय का रूप धारण कर वहाँ गई, जहाँ सब रावण से डर कर देवता और मुनि छिपे थे। पृथ्वी ने उनको अपना दुःख सुनाया, पर किसी से कुछ काम न बना ।
बाद में मुनिगण गौ माता को लेकर ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी सबको लेकर कैलाश पर्वत पहुँचे ।
कैलाश पर्वत पर पहुँचकर सब देवगण आपस में चर्चा करने लगे कि
भगवान कहाँ मिलेंगे?
किसी ने कहा, स्वर्गलोक में मिलेंगे ; किसी ने कहा, बैकुंठ में मिलेंगे ; किसी ने कहा, गोलोक में मिलेंगे ; किसी ने कहा, क्षीरसागर में मिलेंगे ।
देवता भोलेनाथ से पूछने लगे —
"हे भोलेनाथ! आप ही बताइए, भगवान कहाँ मिलेंगे?"
शिवजी मुस्कुराए और बोले —
"यह पूछो कि भगवान कहाँ नहीं मिलेंगे! प्रेम से पुकारो तो भगवान यहीं मिलेंगे।"
गोस्वामी जी लिखते हैं —
"हरि व्यापक सर्वत्र समाना ।प्रेम ते प्रगट होहि मैं जाना"
उसी कैलाश पर्वत पर समस्त देव समाज भगवान श्रीहरि को पुकारने लगा —
गोस्वामी जी लिखते हैं —
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता ।गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता ॥
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई ।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ॥
जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा ।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा ॥
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा ।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा ॥
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा ।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा ॥
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा ।।
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना ॥
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा ।
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ॥"
(देवताओं की स्तुति सुनकर ब्रह्मवाणी हुई । )
भगवान की ब्रह्मवाणी ने कहा —
"हे देवगण! हे मुनिगण! आप डरिए मत। मैं आप लोगों की रक्षा के लिए अवतार लूँगा। पृथ्वी के भार का हरण करूँगा। सूर्यवंश मे अवतार लूँगा। नारद जी की कही हुई एक-एक बात को सत्य करूँगा । आप सब लोग डरिये मत।"
(भगवान ने यह नही कहा कि मैं रावण का वध करने के लिए अवतार लूँगा। भगवान सदैव अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए ही अवतार लेते हैं ।)
यह भगवान राम के जन्म का पाँचवा कारण है।
भगवान राम-जन्म की कथा अगले पृष्ठ पर....
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Jai shree Ram
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