शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
(आप सभी ने इसके पहले के पृष्ठों पर भगवान रामजन्म के 5 कारण पढ़े ,जो शिवजी ने माता पार्वती को सुनाए। इन्हीं कारणों के परिणाम स्वरुप भगवान श्री राम ने अयोध्या में अवतार लिया ।)
एक दिन माता कौशल्या ने राम जी को नहला कर ,सुंदर वस्त्र-आभूषण पहनाकर सजाया और उन्हें अमृतपान करा कर पालने में सुला दिया। जब राम जी सो गए तब कौशल्या मैया अपने कुलदेव श्री रंगनाथ जी (ठाकुर जी) के लिए कुछ पकवान बनाकर घर के मंदिर में ले जाकर ठाकुर जी का भोग लगाया और पट बंद कर दिया।
(दक्षिण भारत में त्रिचुरापल्ली स्थान है, वहाँ कावेरी नदी के पास श्रीरंगम में भगवान रंगनाथजी का मंदिर है । वही रघुकुल (रघुनाथ जी) के कुलगुरु हैं)
( यह नियम है कि जब भी ठाकुर जी को भोग लगाते हैं, तब पट अर्थात दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं।)
भोग लगाने के बाद जब माता ने दरवाजा खोला तो देखा कि राम जी को पालने में सुला कर आई थी किन्तु वे तो मंदिर में बैठे भोग खा रहे हैं! कौशल्या मैया को बड़ा आश्चर्य हुआ और दौड़ कर गई । उन्होंने पालने में देखा तो पालने में राम जी सो रहे थे। फिर वे मंदिर में गई तो देखा वही राम जी वहाँ बैठे भोग लगा रहे थे।
इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा । मतिभ्रम मोर कि आन बिसेषा ॥
देखि राम जननी अकुलानी । प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी ॥
एक ही बालक को दो-दो स्थानों पर एक ही समय पर देखा तो मैया डर गई । कौशल्या माता व्याकुल हो गई। भगवान ने देखा कि मेरी मैया डर गई हैं!
तब दूसरी बार भगवान ने कौशल्या माता को अपने विराट रूप का दर्शन कराया।
देखरावा मातहि निज अद्भुत रूप अखंड ।
रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड ॥
अगनित रबि ससि सिव चतुरानन । बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन ॥
काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ । सोउ देखा जो सुना न काऊ।।
देखी माया सब बिधि गाढ़ी । अति सभीत जोरें कर ठाढ़ी ॥
देखा जीव नचावइ जाही । देखी भगति जो छोरइ ताही ॥
तन पुलकित मुख बचन न आवा । नयन मूदि चरननि सिरु नावा ॥
बिसमयवंत देखि महतारी । भए बहुरि सिसुरूप खरारी ॥
अस्तुति करि न जाइ भय माना । जगत पिता मैं सुत करि जाना ॥
हरि जननी बहुबिधि समुझाई । यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई ॥
अर्थात माता ने प्रभु के शरीर में अनेकों ब्रह्मा को देखा, अनेकों शंकर को देखा, अनेकों नदियाँ देखी। अनेक समुद्र देखे, वन-प्रदेश देखे। माता कौशल्या ने भक्ति को देखा, माया को देखा, जीव को देखा। माता कौशल्या ने तो वह भी देखा जो कभी सुना तक नहीं था । उनका शरीर डर के मारे काँपने लगा। रोम- रोम पुलकित हो गया और भगवान के चरणों में गिर गई।
जब प्रभु ने देखा कि मेरी मैया डर गई हैं! तो फिर से शिशु रूप में आ गए ।
जैसे ही राम जी छोटे बालक बन गए, मैया ने हाथ जोड़ लिए और बोली—
"प्रभु! मुझे अपनी माया के प्रभाव से मुक्त कीजिए।"
बार बार कौसल्या बिनय करइ कर जोरि ।
अब जनि कबहूँ ब्यापै प्रभु मोहि माया तोरि।।
यहाँ आप सब समझ रहे होंगे कि भगवान को जन्म देने वाली माँ भी माया के प्रभाव से नहीं बच पाई। उन्हें भी माया से मुक्त होने के लिए प्रभु से विनती करनी पड़ी है।
इसलिए यदि हम सब भी माया से बचने के बजाय मायापति को अगर भजे, उनसे विनती करें तो संसार में हमें माया व्याप्त नहीं हो सकेगी।
भगवान ने माता कौशल्या को माया के प्रभाव से मुक्त कर दिया।
शेष अगले पृष्ठ पर....
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Jai shree Ram
ReplyDeleteअति सुन्दर! जय श्री राम 🙏🌹
ReplyDeleteJai Shree Ram
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