शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
(आप सभी ने इसके पहले के पृष्ठों पर भगवान रामजन्म के 5 कारण पढ़े ,जो शिवजी ने माता पार्वती को सुनाए। इन्हीं कारणों के परिणाम स्वरुप भगवान श्री राम ने अयोध्या में अवतार लिया ।)
(भगवान श्रीराम ने दूसरी बार माता कौशल्या को विराट रूप के दर्शन दिए और उन्हें माया से मुक्त किया।)
भगवान ने विविध बाल लीलाएँ कीं और अपने सेवकों को आनंद दिया। गुरुजी ने चारों भाइयों का चूड़ाकर्म-संस्कार किया।
चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई। विप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई॥
तुलसीदास जी ने विनयपत्रिका में अपने पद में श्री रामचन्द्रजी के बाल-स्वरूप, उनके नन्हें-नन्हें पैरों से चलने और पैजनिया(पायल) बजने की सुंदर छवि को प्रस्तुत किया है ।
"ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियाँ
किलकि-किलकि उठत धाय, गिरत भूमि लटपटाय
धाय मात गोद लेत, दशरथ की रनियाँ
अंचल रज अंग झारि, विविध भांति सो दुलारि
तन मन धन वारि-वारि, कहत मृदु बचनियाँ
विद्रुम से अरुण अधर, बोलत मुख मधुर-मधुर
सुभग नासिका में चारु, लटकत लटकनियाँ
तुलसीदास अति आनंद, निरखे मुखारबिंद
रघुवर छबि के समान, रघुवर मुख बनियाँ"
गोस्वामी जी लिखते हैं—
भए कुमार जबहिं सब भ्राता । दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता ॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई । अलप काल बिद्या सब आई ॥
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा । मातु पिता गुरु नावहिं माथा ॥
आयसु मागि करहिं पुर काजा । देखि चरित हरषइ मन राजा।।
अनुज सखा संग भोजन करही। मातु-पिता आज्ञा अनुसरही।।
वेद पुराण सुनहिं मन लाई।आपु कहहिं अनुजहि समुझाई।।"
अर्थात चारों भाई कुमारअवस्था में पहुँचे और उनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ। उसके बाद चारों भाई गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने अर्थात पढ़ने के लिए गए और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएँ आ गईं ।
प्रातः काल उठकर रघुनाथ जी सर्वप्रथम अपने माता-पिता और गुरु जी के चरण- वंदन करते हैं । उसके बाद उनकी आज्ञा से ही सभी व्यवहार करते हैं ।रघुनाथ जी के ऐसे आचरण को देखकर महाराज दशरथ अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
रघुनाथ जी ने अपने भाइयों के साथ अल्पकाल (थोड़े समय) में ही सभी प्रकार की विद्या ग्रहण कर ली और वापस महल में आ गए।
जानें अगले भाग में....
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Jai shree Ram
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