शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
पिता के घर स्वयं (सती) का अपमान और यज्ञ मंडप में शिव जी का स्थान ना देख कर सती ने विकराल रूप धारण कर देवताओं से कहा —
सुनहु सभासद सकल मुनिंदा। कही सुनी जिन्ह संकर निंदा॥
सो फलु तुरत लहब सब काहूँ। भली भाँति पछिताब पिताहूँ॥
> "हे देवगण, मुनिगण! इस सभा में बैठकर आप में से जिसने-जिसने भी मेरे पति की निन्दा की है या निन्दा श्रवण मात्र भी की है, उन सबको दंड मिलेगा।"
माता बोली —
> "शंकर केवल मेरे पति ही नहीं हैं, वे जगत के पिता हैं।
आज मेरे पिता ने मेरे पति का अपमान किया है।
मैं इनकी पुत्री के रूप में जीवित नहीं रहूँगी।"
उसी क्षण मैया ने अपने दाहिने पाव के अंगुष्ठ में योगाग्नि को प्रज्वलित कर स्वयं को भस्म कर लिया।
माता का पूरा शरीर योगाग्नि में दहक उठा।
नारद मुनि ने जाकर शिव जी को माता सती की योगाग्नि में आत्माहुति की बात बताई।
बाबा ने आवेश में आकर अपनी जटाओं को धरती पर पटका, जिससे वीरभद्र प्रकट हुए।
समाचार सब संकर पाए। बीरभद्रु करि कोप पठाए॥
जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा। सकल सुरन्ह बिधिवत फलु दीन्हा॥
भै जगबिदित दच्छ गति सोई। जसि कछु संभु बिमुख कै होई॥
यह इतिहास सकल जग जानी। ताते मैं संछेप बखानी॥
भगवान शंकर ने वीरभद्र को कुपित करके भेजा ।
> वहाँ उपस्थित सभी देवताओं को वीरभद्र ने दंडित किया,और दक्ष को अग्निकुंड में जलाकर पूर्ण आहुति दी।
(यह प्रसंग कहता है कि किसी से बदला लेने के लिए अगर आप सत्कर्म भी करते हैं, वह सफल नहीं होता है।)
बाद में भगवान शंकर और श्री हरि को बुलाकर यज्ञ की रक्षा कराई गई।
> जो यज्ञ शिव के बिना आरंभ हुआ था, वही यज्ञ अंत में शिव और हरि की कृपा से पूर्ण हुआ।
📖 शेष कथा अगले भाग में…
📖 अगली कड़ी पढ़ें: शिव-पार्वती-विवाह - भाग 1: सती-पुनर्जन्म
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