शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा॥
सती मैया ने योगाग्नि में देह त्यागने से पहले श्रीहरि से यह वरदान माँगा —
"प्रभु! अगले जन्म में भी मैं बाबा के चरणों की ही दासी बनूँ, । इसके सिवा मुझे और कोई दूसरा वर नहीं चाहिए।"
तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई। जनमीं पारबती तनु पाई॥
इसी वरदान के कारण सती मैया का शरीर शांत हुआ और समय बीता। उसी अनुराग की शक्ति से सती मैया ने हिमाचल महाराज के घर पुनः जन्म लिया। अब वे पार्वती के नाम से जानी गईं—वही भक्ति, वही प्रेम और वही शिव के प्रति समर्पण।
नारद समाचार सब पाए। कोतुकहीं गिरि गेह सिधाए॥
सैलराज बड़ आदर कीन्हा। पद पखारि बर आसनु दीन्हा॥
पार्वती मैया के जन्म लेने के पश्चात नारद जी हिमाचल महाराज के घर पहुँचे । हिमाचल महाराज ने नारद जी का विधिवत स्वागत-सत्कार किया और पार्वती जी को बुलाकर प्रणाम करवाया ।
तत्पश्चात हिमाचल जी ने नारद जी से अपनी पुत्री पार्वती मैया के भाग्य के विषय में पूछा।
सब लच्छन संपन्न कुमारी। होइहि संतत पियहि पिआरी॥
सदा अचल एहि कर अहिवाता। एहि तें जसु पैहहिं पितु माता॥
होइहि पूज्य सकल जग माहीं। एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं॥
एहि कर नामु सुमिरि संसारा। त्रिय चढ़िहहिं पतिब्रत असिधारा॥
नारद मुस्कराए और बोले—
"राजन! आपकी पुत्री तो समस्त गुणों की खान है। आपकी पुत्री का नाम उमा, अंबिका, भवानी होगा ।आपकी पुत्री का सौभाग्य अखंड होगा। आपकी पुत्री के नाम से संसार की समस्त देवियाँ, स्त्रियाँ अपने- अपने जीवन में पतिव्रत धर्म का पालन कर सकेंगी और आपकी पुत्री के कारण आपको यश की प्राप्ति होगी ।"
हिमाचल थोड़ा चिंतित हुए—
“क्या मेरी पुत्री में कोई दोष नहीं है, मुनिवर?”
नारद जी गंभीर हो गए—
“पुत्री में नहीं राजन… किंतु इनके होने वाले वर में अवश्य कुछ बातें विचित्र दिखाई पड़ रही हैं। यदि आप चाहें, तो विस्तार से बताता हूँ…”
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Jai shree Ram
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