शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
(आइये, हम सब मानसिक रूप से बाबा के मंगल विवाह का आनंद लेते हैं )
गोस्वामी जी लिखते हैं —
"लगे सँवारन सकल सुर, वाहन विविध विमान।
होइ सगुन मंगल सुभग, करहि अपछरा गान।।"
शिव-विवाह की तैयारी के लिए स्वर्गलोक में उल्लास छा गया।
देवगण अपने-अपने विमान और वाहनों को सजाने में लग गए,स्वर्गलोक मे अप्सराएँ मंगलगान और नृत्य कर रही हैं।
चारों ओर आनंदमय वातावरण बन गया।
उधर कैलाश पर शिवजी शांत मुद्रा में एक शिला पर विराजमान हैं।
उनकी बारात की तैयारी हो रही है, लेकिन उन्हें दूल्हा स्वरूप में सजाने के लिए कोई नहीं आया।
ऐसे में उनके अपने भक्तगण जुट गए उन्हें सजाने में।
जब देवलोक से बाबा को दूल्हा स्वरूप में तैयार करने के लिए कोई नहीं आया। तब बाबा के गणो ने मिलकर बाबा का शृंगार करना प्रारंभ किया।
गोस्वामी जी लिखते हैं —
"शिवहि शंभुगण करहि सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौर सँवारा।।
कुंडल कंकन पहिरे ब्याला । तन विभूति पट केहरि छाला।।
ससि ललाट सुंदर सिर गंगा। नयन तीनि उपबीत भुजंगा॥
गरल कंठ उर नर सिर माला। असिव बेष सिवधाम कृपाला॥
कर त्रिशूल और डमरू बिराजा। चले बसह चढ़ि बाजहि बाजा।।"
बाबा एक शिला पर बैठे हैं और गणों ने सबसे पहले उनकी जटाओं से श्रृंगार करना प्रारंभ किया—
बाबा की जटाएं कामदहन के समय बिखर गई थी, तो सबसे पहले गणों ने उन जटाओं को समेट कर एक मुकुट-सा बना दिया और उन जटाओं पर सर्पों का मौर बनाकर बाबा को पहनाया गया ।
कानों में सर्पों के कुंडल, हाथों में सर्पों के कंगन और बाजूबंद पहना दिए गए।
वासुकी नामक सर्प का यज्ञोपवीत पहनाया गया । इस प्रकार बाबा को सिर से लेकर पाँव तक साँपों के ही आभूषण पहनाकर उन्हें सजाया गया ।
शरीर पर शमशान की राख लगाई गई और गले में मुंडो की माला पहनाई गई ।
वस्त्र के रूप में शिवजी को कमर में बाघम्बर पहना दिया गया।
शिव जी के शरीर पर विभूति, गले में मुंडमाल, कमर में बाघम्बर।
ललाट पर चंद्रमा, जटाओं में गंगा, तीन नेत्र और हाथों में त्रिशूल व डमरू —
बाबा स्वयं प्रसन्न हो रहे हैं, सोच रहे हैं कि
"मेरे गण मेरा इतना सुंदर शृंगार कर रहे हैं!"
ऐसा अलौकिक रूप देखकर त्रैलोक आश्चर्यचकित हो गए।
कर त्रिशूल और डमरू बिराजा। चले बसह चढ़ि बाजहि बाजा।।
शिव जी नंदी पर सवार हुए।
बाबा अपने वाहन नंदी के साथ हाथ में त्रिशूल और डमरू लेकर तैयार हैं, वर के रूप में।
यह थी त्रिलोक की सबसे विचित्र लेकिन सबसे शुभ और पवित्र बारात।
शेष अगले पृष्ठ पर....
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Jai shree Ram
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