शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण
शिव जी के समझाने के बाद भी नारदजी एक दिन भगवान विष्णु से मिलने गए। वहाँ भी उन्होंने श्रीहरि से अपने पुरुषार्थ के बारे में चर्चा की ।
श्रीपति निज माया तब प्रेरी। सुनहु कठिन करनी तेहि केरी॥
नारदजी की बात सुनकर भगवान विष्णु मन में मुस्कुराए और मन में विचार किया कि नारदजी को अभिमान हो गया है। उनके अभिमान को समूल नष्ट करना होगा । तब लक्ष्मीपति भगवान ने अपनी माया को प्रेरित किया।
नारदजी जिस मार्ग से जा रहे थे, हरिमाया ने उसी रास्ते में सौ योजन (चार सौ कोस) का एक मायावी नगर रचा। उस नगर में शीलनिधि नाम का राजा रहता था ।
उसके विश्वमोहिनी नाम की एक ऐसी रूपवती कन्या थी, जिसके रूप को देखकर लक्ष्मीजी भी मोहित हो जाएँ । वह सब गुणों की खान भगवान की माया ही थी।
राजकुमारी के स्वयंवर हेतु अनेक राजा वहाँ आए थे। नारदजी ने मार्ग में सुंदर नगर देखा तो वे उस नगर में गए। वहाँ जाने पर उन्हें स्वयंवर के बारे में पता चला ।
नारदजी तो ब्रह्मचारी हैं किन्तु माया के वशीभूत हो गए । उनके मन में राजकुमारी विश्वमोहिनी से विवाह करने की इच्छा जागृत हुई । वे तुरंत लक्ष्मीपति भगवान विष्णु के पास पहुँचे ।
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Jai shree Ram
ReplyDeleteऊॅं नमो नारायणा 🙏
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