शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण

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सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण प्रस्तावना: रामजन्म के अलौकिक कारण 🌟✨ (आप सभी ने इसके पहले के पृष्ठों पर भगवान रामजन्म के 5 कारण पढ़े ,जो शिवजी ने माता पार्वती को सुनाए। इन्हीं कारणों के परिणाम स्वरुप भगवान श्री राम ने अयोध्या में अवतार लिया ।) 📚 पूर्व कथाओं की झलक (पिछले भाग की लिंक) 👉 भाग 13 पढ़ें : राम अवतार का प्रथम कारण (जय-विजय का श्राप) 👉 भाग 14 पढ़ें : राम अवतार का दूसरा कारण (वृंदा का श्राप) 👉 भाग 15 पढ़ें : राम अवतार का तीसरा कारण (नारद अभिमान) 👉 भाग 24 पढ़ें : राम अवतार का चौथा कारण (मनु-शतरूपा तप)  👉 भाग 29 पढ़ें : राम अवतार का पाँचवाँ कारण (प्रतापभानु कथा) ⭐ अहल्या उद्धार के बाद श्रीराम का महाराज जनक की नगरी मिथिला में प्रवेश 🚶‍♂️ गोस्वामी जी लिखते हैं— चले राम लछिमन मुनि संगा । गए जहाँ जग पावनि गंगा ॥ गाधिसूनु सब कथा सुनाई । जेहि प्रकार सुरसरि महि आई ॥  (भगवान ने माता अहल्या जी को मोक्ष दिया और लक्ष्मणजी एवं मुनि विश्वामित्रजी के साथ आगे बढ़े। । वे वहाँ पहुँचे, जहाँ जगत को प...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 32)रामजन्म का प्रारंभ (भाग 2)

 रामजन्म का प्रारंभ (भाग 2) 

"रामजन्म प्रारंभ - शिव-पार्वती संवाद कथा भाग 32, www.devotional.co.in"


प्रस्तावना: रामजन्म के रहस्यमयी कारण 🌟✨

(आप सभी ने इसके पहले के पृष्ठों पर भगवान रामजन्म के 5 कारण पढ़े ,जो शिवजी ने माता पार्वती को सुनाए। इन्हीं कारणों के परिणाम स्वरुप भगवान श्री राम ने अयोध्या में अवतार लिया ।)


 


अब गोस्वामी तुलसीदास जी कथा को लेकर अयोध्या पहुँचे । —

(भगवान शंकर माता पार्वती को रामकथा सुना रहे हैं)


महाराज दशरथ का परिचय:रघुकुल के मणि

गोस्वामी जी लिखते हैं —

अवधपुरी रघुकुल-मनि राऊ ।वेद विदित तेहि दसरथ नाऊ।।

धरम-धुरंधर गुन-निधि ज्ञानी।हृदय भगति मति सारंग-पानी।। 

भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं—

"देवी! रघुकुल के मणि ,जिनका नाम महाराज दशरथ है।वेद बताते हैं कि महाराज दशरथ धर्म की धुरी को धारण किए हुए थे अर्थात धर्मपरायण थे । ऐसे महाराज दशरथ ने राम जी जिनके हाथ में शारंग नामक धनुष है ,उनकी छवि को अपने मन में बसा रखी थी । दशरथ जी ने अपने हृदय में राम जी की भक्ति बसा रखी थी।


(आप सबके मन में यह बात आ रही होगी कि भगवान राम के जन्म से पहले ही राजा दशरथ के हृदय में रामचंद्र जी की छवि कैसे बस गई ! तो बात यहाँ स्पष्ट होती है कि जब स्वयंभू मनु और माता शतरूपा ने 23000 वर्षों तक तपस्या की थी, तब भगवान ने अपने वास्तविक रूप में उनके सामने प्रकट नहीं हुए थे बल्कि श्रीराम माता सीता के साथ सारंग नामक धनुष हाथ में लिए हुए उनके सामने प्रकट हुए थे ।अतः उसी छवि को दशरथ जी ने अपने मन मे बसा रखी है।मनु जी का शरीर बदल गया परन्तु वह दृश्य नहीं बदला ।भगवान राम का वही स्वरूप आँखों मे अभी भी बसा हुआ है । ) 


विशेष —
श्रीकृष्ण, श्रीराम एवम् भगवान विष्णु  के धनुष का नाम है> शारंग 
 
भगवान शंकर जी के धनुष का नाम है >पिनाक
 
 परशुराम भगवान के धनुष का नाम है>अजगव

अर्जुन के धनुष का नाम है> गांडीव


राजा दशरथजी की तीन रानियाँ हैं। कौशल्या,कैकयी और सुमित्रा । सबसे बड़ी रानी कौशल्या, उनसे छोटी रानी कैकयी और सबसे छोटी रानी सुमित्रा हैं। तीनों रानियाँ पवित्र आचरण वाली थीं ।


महाराज दशरथ की चिंता: पितरों का जल 🙏🎉

एक दिन जीवन के चौथे पन मे महाराज दशरथ के मन में ग्लानि हुई ।ग्लानि का कारण था —

 "उनके बाद पितरों को जल कौन देगा?"


गोस्वामी जी लिखते हैं —

निज दु:ख सुख सब गुरहि सुनायउ। कहि बसिष्ठ बहुबिधि समुझायउ॥

धरहु धीर होइहहिं सुत चारी। त्रिभुवन बिदित भगत भय हारी॥

जैसे ही महाराज के मन मे ग्लानि हुई ,वे तुरंत दौड़कर अपने कुलगुरु वशिष्ठ देव के पास गए और जाकर अपना सब सुख- दुख उन्हें कह सुनाया ।

  गुरु वशिष्ठ ने कहा—

"राजन! आप चिंता मत कीजिए। आप एक पुत्र के लिए चिंता कर रहे हैं !आपके चार-चार पुत्र आपके आँगन में खेलेंगे। आपके यहाँ परमात्मा स्वयं अवतार लेंगे । भक्तों का भय हरण करने के लिए और त्रैलोक्य में अपनी कीर्ति स्थापित करने के लिए । धैर्य रखिए,महाराज। "


पुत्रकामेष्ठि यज्ञ: गुरु वशिष्ठ का संकल्प ⚔️🔥


गोस्वामी जी लिखते हैं —

सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा। पुत्रकाम सुभ जग्य करावा॥

भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें। प्रगटे अगिनि चरू कर लीन्हें।।

जो वशिष्ठ कछु हृदय विचारा।सकल काज भा सिद्ध तुम्हारा।।


गुरु वशिष्ठ ने पुत्र-कामेष्ठि यज्ञ की रचना की और श्रृंगी ऋषि को बुलाया ।


महाराज दशरथ की पुत्री एवं जामाता का संक्षिप्त परिचय:

( श्रृंगी ऋषि महाराज दशरथ के जामाता यानी दामाद हैं। यहाँ एक बात स्पष्ट होती है कि भगवान श्री राम की एक बड़ी बहन है, जिनका नाम है शांताश्रृंगी ऋषि के साथ उनका विवाह हुआ था ।

शांता का उल्लेख रामचरितमानस एवं वाल्मीकि रामायण में कम है, लेकिन विष्णु पुराण और लोक परंपराओं में उन्हें दशरथ की पुत्री बताया गया है। वे त्याग, धर्म, और भक्ति की प्रतीक हैं।)  


महाराज दशरथ ने यज्ञ में आहुति नहीं दी वे सिर्फ बैठे यज्ञ में किंतु यज्ञ में आहुति गुरुदेव वशिष्ठ और श्रृंगी ऋषि ने दी ।


अग्नि देव का आशीर्वाद: चरू का प्रसाद 📜🌈

गुरुदेव  ने यज्ञ में आहुति दी। यज्ञ पूर्ण हुआ और पूर्णाहुति के बाद यज्ञ-कुंड से अग्नि देव हाथ में चरू (खीर, पायस)का प्रसाद  लेकर प्रकट हुए और गुरुदेव वशिष्ठ जी से बोले—

 "आपकी मनोकामना पूर्ण हुई ।यह लीजिए प्रसाद , इसका वितरण करा दीजिएगा।"

खीर का प्रसाद लेकर गुरुदेव महाराज दशरथ को देकर कहा 

"महाराज! यह प्रसाद लीजिए और इसका आधा भाग महारानी कौशल्या को दीजिए ।बचे हुए आधे भाग के दो भाग करके, एक भाग महारानी कैकेयी को दीजिए ।बाकी के बचे हुए भाग के भी दो हिस्से करके महारानी कौशल्या और महारानी कैकेयी के हाथ से रानी सुमित्रा को प्रसन्नतापूर्वक पूर्वक दिलवा दीजिए।"


प्रसाद वितरण: रामजन्म की तैयारी 👉🚩

जिस प्रकार गुरुदेव ने महाराज दशरथ को प्रसाद के वितरण के बारे में समझाया उसी प्रकार प्रसाद का वितरण किया गया।

जैसे ही माता ने प्रसाद ग्रहण किया, रघुनाथ जी माता के अंक में आकर विराजमान हो गए। 

समय व्यतीत हुआ और अयोध्या में अलौकिक घटना होने वाली है...

शेष अगले पृष्ठ पर...

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