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Showing posts from July, 2025

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण

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सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण प्रस्तावना: रामजन्म के अलौकिक कारण 🌟✨ (आप सभी ने इसके पहले के पृष्ठों पर भगवान रामजन्म के 5 कारण पढ़े ,जो शिवजी ने माता पार्वती को सुनाए। इन्हीं कारणों के परिणाम स्वरुप भगवान श्री राम ने अयोध्या में अवतार लिया ।) 📚 पूर्व कथाओं की झलक (पिछले भाग की लिंक) 👉 भाग 13 पढ़ें : राम अवतार का प्रथम कारण (जय-विजय का श्राप) 👉 भाग 14 पढ़ें : राम अवतार का दूसरा कारण (वृंदा का श्राप) 👉 भाग 15 पढ़ें : राम अवतार का तीसरा कारण (नारद अभिमान) 👉 भाग 24 पढ़ें : राम अवतार का चौथा कारण (मनु-शतरूपा तप)  👉 भाग 29 पढ़ें : राम अवतार का पाँचवाँ कारण (प्रतापभानु कथा) ⭐ अहल्या उद्धार के बाद श्रीराम का महाराज जनक की नगरी मिथिला में प्रवेश 🚶‍♂️ गोस्वामी जी लिखते हैं— चले राम लछिमन मुनि संगा । गए जहाँ जग पावनि गंगा ॥ गाधिसूनु सब कथा सुनाई । जेहि प्रकार सुरसरि महि आई ॥  (भगवान ने माता अहल्या जी को मोक्ष दिया और लक्ष्मणजी एवं मुनि विश्वामित्रजी के साथ आगे बढ़े। । वे वहाँ पहुँचे, जहाँ जगत को प...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग-9)पार्वतीजी के प्रश्न पर शिवजी का रामचरित में ध्यान

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 पार्वतीजी के प्रश्न पर शिवजी का रामचरित में ध्यान : 🌸 तुलसीदास जी का प्रमाण — "हर हिय राम चरित सब आए" (पार्वतीजी के प्रश्न से शिवजी के हृदय में रामचरित अवतरित हुआ) तुलसीदास जी लिखते हैं — हर हियँ रामचरित सब आए। प्रेम पुलक लोचन जल छाए।। श्रीरघुनाथ रूप उर आवा। परमानंद अमित सुख पावा।।  माता ने प्रश्न पूछा तो माता के प्रश्न सुनते ही, भगवान शिव के हृदय में पूरा रामचरित अवतरित हो गया। ।पूरा रामचरित ही अवतरित नहीं हुआ अपितु ह्रदय में श्री रघुनाथ जी के दर्शन हो गए। 🕉️ श्री रघुनाथजी के दर्शन और शिवजी का ध्यानमग्न होना : (भगवान शिव रामजी के रूप का साक्षात्कार कर ध्यानस्थ हो गए) मगन ध्यान रस दंड जुग पुनि मन बाहेर कीन्ह। रघुपति चरित महेस तब हरषित बरनै लीन्ह॥   ह्रदय में रामचंद्र जी के दर्शन होते ही बाबा फिर से ध्यान में चले गए। 2 दंड (दो घड़ी) अर्थात 48 मिनट बाद ध्यान से बाहर आए और तब वे प्रसन्न होकर श्री रघुनाथजी का चरित्र वर्णन करने लगे । 🙏 शिवजी का मंगलाचरण — रामचरित की पावन चौपाइयाँ (“मंगल भवन अमंगल हारी” से शिवजी ने मंगलाचरण प्रारंभ किया) ध्यान से बाहर आने के बाद बा...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग-8)पार्वतीजी का भ्रम

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पार्वतीजी का भ्रम और रामजी की लीला का रहस्य 🌸 तुलसीदास जी का प्रमाण — "हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी" (पार्वतीजी द्वारा अपने भ्रम को दूर करने की प्रार्थना) तुलसीदास जी लिखते हैं — ससिभूषन अस हृदयँ बिचारी। हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी॥ पार्वती जी ने कहा—   हे शशिभूषण! हे नाथ! हृदय में ऐसा विचार कर मेरी बुद्धि के भ्रम को दूर कीजिए 🌸 प्रभु शंकर का उत्तर — "देवी! आपको भी भ्रम है!" (शिवजी का पार्वतीजी से करुणामय संवाद) शंकर भगवान ने पार्वती जी से बोले— "देवी! आपको भी भ्रम है !" 🌸 3. सती प्रसंग की पुनः चर्चा — "यह भ्रम तो पिछले जन्म का है, प्रभु!" (सतीजी के मोह का कारण और उसका प्रभाव) भवानी बोली— " यह भ्रम तो पिछले जन्म का है, प्रभु!" पिछले जन्म में सती को भ्रम क्यों हुआ था? जानने के लिए क्लिक करें 🌸 भवानीजी का प्रश्न — "रामजी ब्रह्म हैं या दशरथ पुत्र?" (पार्वतीजी के मन का संशय और तर्क) तुलसीदास जी लिखते हैं — प्रभु जे मुनि परमारथबादी। कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी॥ सेस सारदा बेद पुराना। सकल करहिं रघुपति गुन गाना॥ ...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग-7): शिव जी का पार्वतीजी को बाम भाग आसन देना

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शिव जी का पार्वतीजी को बाम भाग आसन देना : 📜 तुलसीदास जी का प्रमाण — "जानि प्रिया आदर अति कीन्हा" बाबा ने माता पार्वती को देखा और— तुलसीदास जी लिखते हैं — जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा। बाम भाग आसनु हर दीन्हा॥ बैठीं सिव समीप हरषाई। पूरुब जन्म कथा चित आई॥ अपनी प्रिया जानकर, शिव जी ने माँ भवानी को  बहुत आदर के साथ अपने बायीं ओर बैठने के लिए आसन दिया। पार्वती जी प्रसन्न होकर शिवजी के पास बैठ गईं। तब पार्वती जी को पिछले जन्म की कथा स्मरण हो आई । 🔥 सती प्रसंग और पार्वतीजी की पुनः स्थान प्राप्ति इससे पहले पूर्व जन्म में बाबा ने सती को अपने सामने बिठाया था,  क्योंकि उन्होंने श्री राम जी की परीक्षा लेने हेतु माता सीता का रूप धारण किया था और शिवजी सीता जी को माता के रूप में पूजते हैं । इसलिए उन्होंने सती को मानसिक रूप से त्याग दिया था। पिछले जन्म की पूरी कथा पढ़ने के लिए क्लिक करें 👇          Shiv-Parvati Samvad Bhag-1 पढ़ें अब बाबा ने पार्वती जी को अपने बायीं ओर बिठाया । खोया हुआ स्थान प्राप्त हुआ, तो माता गदगद हो गईं ।  🙏 पार्वतीजी की प्रार्...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग-6): कैलाश पर्वत पर वटवृक्ष के नीचे शिवजी का ध्यान और उमा का समर्पण-याज्ञवल्क्य-भारद्वाज संवाद

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🔱 कैलाश पर्वत पर वटवृक्ष के नीचे शिवजी का ध्यान और उमा का समर्पण : ✍ तुलसीदास जी द्वारा कथा का प्रयाग से कैलाश तक प्रसंग : सर्वप्रथम तुलसीदास जी कथा को काशी से प्रयाग ले गए थे अब याज्ञवल्क्य जी इस कथा को प्रयाग से कैलाश —तीसरे घाट की ओर ले जा रहे हैं। 🕉 कैलाश शिखर : जहाँ शिव-उमा का सनातन निवास है : तुलसीदास जी लिखते हैं — परम रम्य गिरिबरु कैलासू। सदा जहाँ सिव उमा निवासू॥ अब याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज जी को रामकथा सुना रहे हैं — याज्ञवल्क्य जी कहते हैं —  " भारद्वाज जी ! उस कैलाश- शिखर पर माँ भवानी और भगवान शिव का सदैव वास है।" 🌳 कैलाश का वटवृक्ष : नित्य नूतन और शिव का विश्राम स्थल : तुलसीदास जी लिखते हैं — तेहि गिरि पर पट बिटपु बिसाला। नित नूतन सुंदर सब काला।। एक बार तेहि तर प्रभु गयऊ। तरु बिलोकि उर अति सुख भयऊ ।। याज्ञवल्क्य जी कहते हैं — "उसी कैलाश पर्वत पर एक बरगद का वृक्ष है। बाबा उसी वटवृक्ष के नीचे सदैव विश्राम करते हैं। उस वटवृक्ष की यह विशेषता है कि वह नित्य नूतन बना रहता है। एक दिन भगवान शंकर उस वटवृक्ष के नीचे गए । उसे देखकर बाबा के हृदय में बहुत आनं...

शिव-पार्वती संवाद - भाग-5 :रामकथा सुनने की पात्रता, याज्ञवल्क्य-भारद्वाज संवाद

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रामकथा सुनने की पात्रता और याज्ञवल्क्य-भारद्वाज संवाद — 📖 शिव-पार्वती की कथा में डूबे भारद्वाज मुनि : "रामकथा सुनने की लालसा और श्रद्धा" याज्ञवल्क्य ऋषि श्री रामचन्द्रजी के स्थान पर शिव-पार्वती की कथा भारद्वाज जी को सुनाते रहे और भारद्वाज जी प्रेम पूर्वक कथा सुनते गए । शिव-पार्वती की कथा सुनते-सुनते मन में यह सोच रहे हैं —   "जब शिव-पार्वती की कथा इतनी सुंदर है , तो राम की कथा भी अद्भुत होगी ! कितना आनंद मिलेगा !" यह सब सोचते -सोचते कथा के प्रति प्रेम और भी बढ़ गया। 🧘 याज्ञवल्क्य ऋषि का भारद्वाज मुनि की परीक्षा लेना : "रामकथा के अधिकारी कौन?" तुलसीदास जी लिखते हैं — प्रथमहिं मैं कहि सिव चरित बूझा मरमु तुम्हार। सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त बिकार॥ तब याज्ञवल्क्य ऋषि कहते हैं—  "भारद्वाज जी ! शिवचरित्र सुनाकर मैं आपका मर्म जान गया ।आपकी शीलता और आपके गुणों को जान गया हूँ।    कैसे ?  "आपने पूछी थी 'राम कथा', मैंने सुनाई 'शिव कथा' । उसके बाद भी आपने बीच में रोका नहीं और प्रेम पूर्वक कथा श्रवण करते रहे ।" 🌼 शीलता और विक...

शिव-पार्वती संवाद - भाग-4 :रामकथा के अधिकारी कौन और याज्ञवल्क्य-भारद्वाज संवाद

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🪔 रामकथा के अधिकारी कौन? 📖 पूर्व कथा की स्मृति : 👉  इससे पूर्व के पृष्ठ पर हमने भूत भावन भगवान शिव और माँ भवानी के मंगल विवाह की कथा पढ़ी, सुनी और समझी। ❓ भारद्वाज का प्रश्न – राम कौन हैं? यदि आपने पढ़ा हो , तो मैंने याज्ञवल्क्य और भारद्वाज मुनि के संवाद में लिखा है कि भारद्वाज मुनि ने याज्ञवल्क्य ऋषि से प्रश्न पूछा था —  "हे मुनिवर! ये राम जी कौन हैं?" 👉 याज्ञवल्क्य जी से राम जी का परिचय पूछने पर, उत्तर राम नहीं, शिव कथा से प्रारंभ हुआ। यदि आप लोगों को याद हो कि भारद्वाज के प्रश्न का सीधे  उत्तर न देते हुए, राम जी के बारे में ना बताते हुए याज्ञवल्क्यजी ने शिव जी के बारे में बताना प्रारंभ किया और शिव-पर्वती के विवाह की कथा सुना डाली।  याज्ञवल्क्य-भारद्वाज संवाद: पहले भाग को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें 🧘 क्यों पहले शिव की कथा सुनाई गई?   इसका कारण है — तुलसीदास जी लिखते हैं — सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं॥ बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू। राम भगत कर लच्छन एहू॥ अर्थात शिवजी के चरण कमलों में जिनकी प्रीति नहीं है, वे श्री रामचन...

शिव-पार्वती विवाह - भाग-11:पाणिग्रहण संस्कार

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पाणिग्रहण संस्कार :                                           🙏 पाणिग्रहण एवं मंगल विवाह:      “वेदमंत्रों के साथ शिव–पार्वती विवाह” गोस्वामी जी लिखते हैं— पाणिग्रहण जब कीन्ह महेसा। हिय हरसे तब सकल सुरेसा।। वेदमंत्र मुनिवर उच्चरही। जय जय जय संकर सुर करही।। बाजहि बाजन बिबिध विधाना ।सुमन वृष्टि नभ भई बिधि नाना।। हर गिरिजा कर भयउ बिबाहु। सकल भुवन करि रहा उछाहू।। शिव जी ने पार्वती जी का पाणिग्रहण किया। उसके बाद वेदों में जिस प्रकार लिखा हुआ है, उसी विधि से  मुनियों ने मंगलविवाह संपन्न कराया । 🌸 तीनों लोकों में मंगलमयी उत्सव :      “देवताओं ने पुष्पवर्षा की, गूँजा जयघोष” जैसे ही उमा महेश का विवाह संपन्न हुआ, देवताओं ने पुष्प- वर्षा की,  तीनों लोक, 14 भवन बोल पड़ा  —  🙏 उमापति महादेव की जय 🙏  🙏 शिवपार्वती की जय 🙏  🙏 गौरीशंकर की जय 🙏 👩‍👧मैना माता का क्षमायाचना और विदाई उपदेश      “नारीधर्म का आदर्श पाठ” ...

शिव-पार्वती विवाह - भाग-10: पार्वती के पूर्वजन्म की कथा

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पार्वती के पूर्वजन्म की कथा : नारद जी का आगमन और मैना माता को समझाना : गोस्वामी जी लिखते हैं — तेहि अवसर नारद सहित अरु रिषि सप्त समेत। समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरत निकेत॥ तभी नारद जी सप्त-ऋषियों के साथ वहाँ आए और मैना मैया को शांत कराया और कहा — पूर्वजन्म की कथा और सती का स्मरण : गोस्वामी जी लिखते हैं — तब नारद सबही समुझावा। पूरुब कथा प्रसंगु सुनावा॥ मयना सत्य सुनहु मम बानी। जगदंबा तव सुता भवानी॥ "आपकी पुत्री तो साक्षात भगवती है, जन्म-जन्मांतर से ये शिव की अर्धांगिनी रही हैं ।पिछले जन्म में सती थीं। पिछले जन्म में मैया ने शिव जी के वचनों पर विश्वास नहीं किया । श्रीराम जी का परीक्षण करने के लिए माता सती ने माँ सीता का रूप धारण कर लिया था, इसलिए इन्हें शरीर त्यागना पड़ा । इस जन्म में भी शिवजी ही इनके पति हैं।" हिमाचल और मैना का भावुक क्षमायाचना : इस प्रकार नारद जी के समझाने पर हिमाचल-मैना को जब पता चला कि मेरी पुत्री साक्षात माँ भवानी हैं! दोनों ने मिलकर मैया को प्रणाम कर क्षमा माँगी। दूल्हा रूप में भगवान शिव का मंडप में प्रवेश : उसके बाद ब्राह्मणों के कहने पर भगव...

शिव-पार्वती विवाह-भाग-9:शिव-विवाह की तैयारी

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 शिव-विवाह की तैयारी : 🙏 द्वारचार की विधि और स्वागत : गोस्वामी जी लिखते हैं — मैनाँ सुभ आरती सँवारी। संग सुमंगल गावहिं नारी॥ मैना मैया ( पार्वती मैया की माँ )  शिव जी का (दूल्हे का) द्वार-पूजन करने के लिए आरती का थाल सजा कर लाई । 🚫 मैना माता की विवाह की अस्वीकृति :   मैना मैया ने जब बाबा के अद्भुत/विचित्र रूप को देखा तो उनके हाथ से आरती की थाली वहीं गिर गई और रोती हुई वापस चली गईं ।  😢 मैना माता का हृदयविदारक विलाप : गोस्वामी जी लिखते हैं — मैना हृदयँ भयउ दुखु भारी। लीन्ही बोली गिरीसकुमारी॥ अधिक सनेहँ गोद बैठारी। स्याम सरोज नयन भरे बारी॥ पार्वती मैया का सिर अपनी गोद में रखकर मैना मैया विलाप करने लगी। कहने लगी कि — कस कीन्ह बरु बौराह बिधि जेहिं तुम्हहि सुंदरता दई। जो फलु चहिअ सुरतरुहिं सो बरबस बबूरहिं लागई॥ तुम्ह सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि महुँ परौं। घरु जाउ अपजसु होउ जग जीवत बिबाहु न हौं करौं॥ "मैं अपनी पुत्री लेकर को पहाड़ से कूद जाऊँगी, कुएँ में जाकर छलाँग लगा लूँगी किन्तु अपनी पुत्री का विवाह इस बावले के साथ कदापि नहीं होने दूँगी।  नारद ज...

शिव-पार्वती विवाह - भाग-8:शिवजी के अनोखे गण

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शिवजी के अनोखे- अनुशासित गण : 🔔 श्रृंगी के बिगुल से गूँज उठीं दिशाएँ  : जैसे ही श्रृंगी ने बिगुल बजाया—  ' हर-हर महादेव', 'हर हर महादेव'  की आवाज से दसो दिशाएँ गूँज उठीं और जितने भी भूत, प्रेत ,पिशाच, डाकिनी आदि गण थे, सब के सब कैलाश पर्वत की ओर चल पड़े । 👻 गणों का आगमन :  जैसे ही आवाह्न हुआ, सभी भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, योगिनियाँ – शिव के बुलावे पर दौड़े चले आए। 🛐 अनुशासन में शिवगण:  सारे भूत- प्रेत आए और कतारबद्ध होकर शिव जी को एक साथ दंडवत किया ।  गोस्वामी जी लिखते हैं— "शिव अनुसासन सुनि सब आए । प्रभु पद जलज शीश तिन्ह नाए।। 👁️‍🗨️ गणों का अद्भुत स्वरूप :  नाना वाहन नाना बेषा । बिहसे सिव समाज निज देखा।। कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू।बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।। विपुल नयन कोउ नयन बिहीना । ह्रस्ट पुष्ट कोउ अति तन झीना।।" तन कीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें। भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरें॥ खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै। बहु जिनस प्रेत पिसाच जोगि जमात बरनत नहिं बनै॥ जितने भूत है , उतने प्रकार के उनके स्वरूप है ।सबस...

शिव-पार्वती विवाह - भाग-7:शिवजी की अनोखी बारात

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शिवजी की अनोखी बारात :   🚩 कैलाश की ओर सजधज कर प्रस्थान : सभी देवता अपनी-अपनी देवियों के साथ सज-धजकर कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान कर गए। स्वर्गलोक उत्सव से भर गया।   देवियाँ भगवान शिव के इस विशेष, अद्भुत और विचित्र वर-स्वरूप को देखकर चकित रह गईं —  नागों के आभूषण, भस्म का लेप, और मुंडों की माला! देवतागण अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर आनंदपूर्वक बारात में सम्मिलित होने चले। स्वर्ग की सारी सृष्टि इस विवाह- यात्रा में उमड़ पड़ी थी। चारों ओर मंगलगान हो रहा था। 😲 देवियों की आश्चर्यचकित दृष्टि : शिवजी का ऐसा अलौकिक दूल्हा रूप देखकर देवियाँ आपस में कहने लगीं,  “क्या यही है वह वर जिसे पार्वती ने वरन किया है?” उनके मन में आश्चर्य और थोड़ी चिंता भी थी — लेकिन पार्वती जी की निष्ठा अडिग थी। 👑 ब्रह्मा-विष्णु का सुझाव —  बिष्नु कहा अस बिहसि तब बोलि सकल दिसिराज। बिलग बिलग होइ चलहु सब निज निज सहित समाज॥ विष्णु जी ने ब्रह्मा जी से कहा — " वर के अनुरूप बारात नहीं है ।इसलिए अपने-अपने समाज को लेकर अपने-अपने समूह के साथ में आगे बढिये।"  आज्ञा मानकर सभी देवतागण ...

शिव-पार्वती विवाह - भाग-6: शिवजी का अनोखा दूल्हा स्वरूप

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शिवजी का अनोखा दूल्हा स्वरूप : (आइये, हम सब मानसिक रूप से बाबा के मंगल विवाह का आनंद लेते हैं ) ✨ स्वर्गलोक में उत्सव : गोस्वामी जी लिखते हैं — "लगे सँवारन सकल सुर, वाहन विविध विमान। होइ सगुन मंगल सुभग, करहि अपछरा गान।।" शिव-विवाह की तैयारी के लिए स्वर्गलोक में उल्लास छा गया। देवगण अपने-अपने विमान और वाहनों को सजाने में लग गए, स्वर्गलोक मे अप्सराएँ मंगलगान और नृत्य कर रही हैं। चारों ओर आनंदमय वातावरण बन गया। 👑 शिव जी का दूल्हा स्वरूप : उधर कैलाश पर शिवजी शांत मुद्रा में एक शिला पर विराजमान हैं। उनकी बारात की तैयारी हो रही है, लेकिन उन्हें दूल्हा स्वरूप में सजाने के लिए कोई नहीं आया। ऐसे में उनके अपने भक्तगण जुट गए उन्हें सजाने में। 🕉️ गणों द्वारा बाबा का विशेष श्रृंगार : जब देवलोक से बाबा को दूल्हा स्वरूप में तैयार करने के लिए कोई नहीं आया। तब बाबा के गणो ने मिलकर बाबा का शृंगार करना प्रारंभ किया। गोस्वामी जी लिखते हैं — " शिवहि शंभुगण करहि सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौर सँवारा।। कुंडल कंकन पहिरे ब्याला । तन विभूति पट केहरि छाला।। ससि ललाट सुंदर सिर ...

शिव-पार्वती-विवाह-भाग 5 : विवाह हेतु देवताओं द्वारा शिव-स्तुति

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 शिव-पार्वती-विवाह-भाग 5 : विवाह हेतु देवताओं द्वारा शिव-स्तुति 🌸 देवताओं की शिवजी से विनती : सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहाँ सिव कृपानिकेता॥ पृथक-पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा। भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा॥ बोले कृपासिंधु बृषकेतू। कहहु अमर आए केहि हेतू॥ रति के जाने के बाद सभी देवता तुरंत कैलाश पर्वत पहुँचे और सभी ने एक साथ मिलकर शिवजी की स्तुति की।  🙏 शिवजी की प्रसन्नता और संवाद :   शिव जी प्रसन्न हुए और देवताओं से कैलाश आने का कारण पूछा। सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु। निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु॥ ब्रह्मा जी ने बोले— "प्रभु ! आपने श्री राम जी को वचन दिया है।इसलिए ये सभी देवतागण आपका विवाह देखने के लिए उत्सुक हैं। " ब्रह्माजी की प्रार्थना सुनकर और प्रभु श्री रामचन्द्रजी के वचनों को याद करके शिवजी ने प्रसन्नतापूर्वक कहा— "हम तैयार हैं, विवाह हेतु । आप रचना बनाइए।"  🕉️ ब्रह्मा जी द्वारा विवाह की योजना :   ब्रह्माजी ने सप्तर्षियों को हिमाचल महाराज के यहाँ भेजा और विवाह का मुहूर्त निकलवा कर लाने के लिए कहा। सप्तर्षि शिव और पार्वती के...

शिव-पार्वती-विवाह - भाग 4 : कामदेव-दहन की कथा

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 शिव-पार्वती-विवाह - भाग 4 : कामदेव-दहन की कथा  🧿 ताड़कासुर का उत्पात और ब्रह्मा जी की भविष्यवाणी  : इसी बीच एक दैत्य ने जन्म लिया । जिसका नाम था ताड़कासुर । ताड़कासुर ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान ले लिया—  शिव-शक्ति के तेज से जो संतान उत्पन्न होगी, उसके हाथों उसकी मृत्यु होगी । 🙏 समाधि में लीन शिवजी और देवताओं की चिंता :   ब्रह्मा जी से वरदान लेने के बाद ताड़कासुर ने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया । इन्द्र देवताओं को लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुँचे । ब्रह्माजी ने ताड़कासुर के वध से संबंधित बात बताई और कहा—   " शिव जी के विवाह हेतु कन्या तैयार है ।आप सभी शिव जी को समाधि से बाहर वापस लाइए।" 🏹 कामदेव का प्रयास — पुष्पबाणों की वर्षा  : शिवजी को समाधि से वापस लाने के लिए  देवताओं  ने  कामदेव को तैयार किया । कामदेव जब कैलाश की ओर चले तो पूरी सृष्टि कामदेव के वशीभूत हो गई किंतु भगवान शिव पर काम का तनिक भी असर नहीं हुआ । कैलाश पहुँचकर, आम के वृक्ष के पत्तों के बीच में छिपकर कामदेव ने पुष्पों के 5 तीर भगवान शि...

शिव-पार्वती-विवाह - भाग 3 : शिव- समाधि

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 शिव-पार्वती-विवाह - भाग 3 : शिव- समाधि   🕉️ हजारों वर्षों की तपस्या और आकाशवाणी :  अपने आराध्य प्रभु शंकर को वर रूप में पाने हेतु पार्वती मैया वन में तपस्या करने निकल पड़ी और हजारों वर्ष तक तपस्या की । हजारों वर्ष तपस्या करने के उपरांत आकाशवाणी हुई —  " भवानी जी!  आपकी तपस्या पूर्ण हुई, आपके मन में जो वर रचा है , वह अवश्य प्राप्त होगा । अब आप घर लौट जाइए ।"   🙏 श्रीरामजी का शिवजी से अद्भुत अनुरोध : इधर सती मैया के शरीर त्यागने के बाद बाबा को वैराग्य हो गया। शिवजी वैरागी बन, इधर-उधर घूमने लगे ।  एक दिन भगवान श्री राम जी बाबा के सामने प्रकट हुए और कहा —   "यदि आप मुझे सत्य में प्रेम करते हैं , तो जो मैं मांगूंगा  वह आप मुझे देंगे?"  बाबा ने कहा— "कहिए प्रभु! क्या चाहिए?" राम जी बोले — " जाइये और शैलपुत्री से विवाह कीजिए ।"  अब बिनती मम सुनहु सिव जौं मो पर निज नेहु। जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु॥ 📜 शिवजी का धर्म–संकोच और आज्ञा पालन : कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं॥ सिर धरि आयस...

शिव-पार्वती-विवाह - भाग 2: नारद की रहस्यमयी भविष्यवाणी

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🪔 शिव-पार्वती-विवाह : नारद की रहस्यमयी भविष्यवाणी : 🕉️ नारदजी ने  बताना प्रारंभ किया:  नारदजी ने पार्वती के होनेवाले वर केे विषय मेें बताना प्रारंभ किया—  "अगुन अमान मातु पितु हीना। उदासीन सब संशय छीना।।" अगुन — त्रिगुणातीत , अर्थात्  सत, रज, तम तीनों गुणों से परे (लेकिन हिमाचल जी समझे कि अगुन यानी बिना किसी गुण का होगा ) अमान — मान-सम्मान से परे (किंतु हिमाचल महाराज समझे कि जगत में उसका कोई मान-सम्मान नहीं होगा ।) मातु-पितु हीना —   नारद जी ने कहा कि वह माता-पिता के बिना होगा अर्थात् वह अजन्मा होगा । किंतु हिमाचल जी ने समझा कि वह अनाथ होगा। 🧘‍♂️ वर का विचित्र स्वरूप — नारदजी का विवरण:  "जोगी जटिल अकाम मन , नगन अमंगल बेष। अस स्वामी एहि कहाँ मिलिहि, परी हस्त असि रेख।।" नारदजी ने बताया — "आपकी पुत्री का पति जोगी होगा ; उसकी विशाल जटाएं  होंगी। काम रहित होगा और उसकी कोई कामना नहीं होगी । हमेशा नंगा रहेगा , कुछ पहनेगा नहीं और अमंगल भेष बनाकर घूमेगा।" 👂 यह सुनकर हिमाचल जी व्याकुल हो उठे, बोले – "क्या इसका कोई उपाय नहीं है?" 🗣️ ब्रह्मवा...

शिव-पार्वती-विवाह - भाग 1 : सती-पुनर्जन्म

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 शिव-पार्वती-विवाह : सती-पुनर्जन्म  🌸 सती का अंतिम प्रण और श्रीराम से वरदान  : सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा॥ सती मैया ने योगाग्नि में देह त्यागने से पहले श्रीहरि से यह वरदान  माँगा —   "प्रभु! अगले जन्म में भी मैं बाबा के चरणों की ही दासी बनूँ, । इसके सिवा मुझे और कोई दूसरा वर नहीं चाहिए।" 🕉️ एक नया जन्म—पार्वती रूप में अवतरण : तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई। जनमीं पारबती तनु पाई॥ इसी वरदान के कारण सती मैया का शरीर शांत हुआ और समय बीता। उसी अनुराग की शक्ति से सती मैया ने हिमाचल महाराज के घर पुनः जन्म लिया। अब वे पार्वती के नाम से जानी गईं—वही भक्ति, वही प्रेम और वही शिव के प्रति समर्पण। 🙏 नारद मुनि का हिमाचल भवन में आगमन : नारद समाचार सब पाए। कोतुकहीं गिरि गेह सिधाए॥ सैलराज बड़ आदर कीन्हा। पद पखारि बर आसनु दीन्हा॥ पार्वती मैया के जन्म लेने के पश्चात नारद जी हिमाचल महाराज के घर पहुँचे । हिमाचल महाराज ने नारद जी का विधिवत स्वागत-सत्कार किया और पार्वती जी को बुलाकर प्रणाम करवाया ।  त्रिकालग्य सर्बग्य तुम्ह गति सर्बत्र तुम्हारि। कहह...