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Showing posts from August, 2025

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 40): सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण

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सखी द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण का प्रथम दर्शन और पुष्पवाटिका-निरीक्षण प्रस्तावना: रामजन्म के अलौकिक कारण 🌟✨ (आप सभी ने इसके पहले के पृष्ठों पर भगवान रामजन्म के 5 कारण पढ़े ,जो शिवजी ने माता पार्वती को सुनाए। इन्हीं कारणों के परिणाम स्वरुप भगवान श्री राम ने अयोध्या में अवतार लिया ।) 📚 पूर्व कथाओं की झलक (पिछले भाग की लिंक) 👉 भाग 13 पढ़ें : राम अवतार का प्रथम कारण (जय-विजय का श्राप) 👉 भाग 14 पढ़ें : राम अवतार का दूसरा कारण (वृंदा का श्राप) 👉 भाग 15 पढ़ें : राम अवतार का तीसरा कारण (नारद अभिमान) 👉 भाग 24 पढ़ें : राम अवतार का चौथा कारण (मनु-शतरूपा तप)  👉 भाग 29 पढ़ें : राम अवतार का पाँचवाँ कारण (प्रतापभानु कथा) ⭐ अहल्या उद्धार के बाद श्रीराम का महाराज जनक की नगरी मिथिला में प्रवेश 🚶‍♂️ गोस्वामी जी लिखते हैं— चले राम लछिमन मुनि संगा । गए जहाँ जग पावनि गंगा ॥ गाधिसूनु सब कथा सुनाई । जेहि प्रकार सुरसरि महि आई ॥  (भगवान ने माता अहल्या जी को मोक्ष दिया और लक्ष्मणजी एवं मुनि विश्वामित्रजी के साथ आगे बढ़े। । वे वहाँ पहुँचे, जहाँ जगत को प...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 24)मनु-शतरूपा का तप और भगवान राम-जन्म का चौथा कारण

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 मनु-शतरूपा का तप और भगवान राम-जन्म का चौथा कारण : यह कथा शिव जी माँ पार्वती को सुना रहे हैं — मनु जी की बात सुनकर भी श्री रघुनाथ जी ने उन्हें अपने बालस्वरूप मे दर्शन नहीं दिए । श्री रघुनाथ जी, किशोरी सीता मैया के साथ में प्रकट हो गए। 👀 दिव्य रूप का अद्भुत दर्शन : गोस्वामी जी लिखते हैं — "नील सरोरुह नील मनि , नील नीरधर स्याम। लाजहिं तन सोभा निरखि ,कोटि कोटि सत काम॥" भगवान के नीले कमल , नीलमणि और नीले मेघ (जलयुक्त बादल)  के समान कोमल, प्रकाशमय और सरस   श्यामवर्ण शरीर की शोभा देखकर करोड़ों कामदेव भी लजा जाते हैं। 🌸 तृप्त न हो सकी भक्ति-दृष्टि : गोस्वामी जी लिखते हैं — चितवहीं सादर रूप अनूपा । तृप्ति ना मानहीं मनु सतरूपा।। " मनु जी और शतरूपा जी प्रभु के रूप में खो गए। दोनो सोचने लगे कि बड़े हैं तो इतने सुंदर हैं, छोटे होंगे तो कितने सुंदर दिखेंगे!" 🎁 वरदान की याचना : “राम जैसे पुत्र” मनुजी बोले — " प्रभु!हम आपसे कुछ और भी माँगना चाहते हैं ।" प्रभु बोले — " निसंकोच माँगिए ।" ( मनु जी जगत के पिता को अपना पुत्र बनाना चाहते हैं लेकिन वे...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 23) मनु-शतरूपा का तप और रघुनाथ जी के दर्शन

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  मनु-शतरूपा का तप और रघुनाथ जी के दर्शन: ✨ भगवान की मधुर आवाज और अद्भुत परिवर्तन : गोस्वामी जी लिखते हैं — "हृष्ट-पुष्ट तन भए सुहाए । मानहु अबहि भवन ते आए।।" भगवान की मधुर आवाज मनु और माता शतरूपा के कानों में पड़ी और जैसे ही भगवान की आवाज उनके कानों में पड़ी, स्वयंभू मनु जी ने आँखें खोली । उन्होंने महसूस किया कि उन दोनों के शरीर हृष्ट-पुष्ट हो गए हैं । मानो अभी-अभी अपने महल से आए हों।  💭 मनु जी की इच्छा : प्रभु के बालस्वरूप का दर्शन: शतरूपा जी से मनु जी बोले — "जिसकी आवाज से हमारे अंदर इतना बदलाव आ गया,यदि वह दिखलाई पड़ जाए, तो कितना बदलाव होगा!"  शिव जी और काकभुशुण्डि के हृदय/मन में विराजमान श्रीराम का बाल-स्वरूप : मनु जी कहानियों में सुना करते थे कि भगवान शिव , श्रीराम जी को अपने हृदय में रखते हैं और कागभुसुंडी जी श्रीराम को अपने मन में रखते हैं । ( भगवान शिव जी भगवान राम के बाल-स्वरूप को अपने हृदय में रखते हैं। मनु जी को प्रभु के उसी बाल - स्वरूप का दर्शन करने की इच्छा जागृत हुई।) मनु जी की प्रार्थना और प्रभु की कृपा : गोस्वामी जी लिखते हैं — जो...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 22) — भगवान राम के अवतार का चौथा कारण :मनु-शतरूपा का तप और आकाशवाणी

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  मनु-शतरूपा का तप और आकाशवाणी : 🌍 सृष्टि के आदि माता-पिता : मनु और शतरूपा: शिव जी माँ पार्वती को भगवान राम के अवतार का चौथा कारण सुनाते हैं — चौथे कारण में सृष्टि के आदि माता-पिता स्वयंभू मनु और माता शतरूपा का तप और उनको मिले वरदान की कथा है। 👨‍👩‍👧 संतान एवं वंश परंपरा का वर्णन : विशेष-  स्वयंभू मनु और माता शतरूपा सृष्टि के आदि माता- पिता हैं। मनुजी के 2 पुत्र हुए- बड़े पुत्र का  नाम  उत्तानपाद था; जिनके पुत्र (प्रसिद्ध) हरिभक्त ध्रुवजी हुए और छोटे पुत्र का नाम प्रियव्रत था । जिनकी प्रशंसा वेद और पुराण करते हैं। देवहूति मनु और माता शतरूपा की ही कन्या थी, जो कर्दम मुनि की प्रिय पत्नी हुई और जिन्होंने आदि देव, दीनों पर दया करने वाले समर्थ एवं कृपालु भगवान कपिल को गर्भ में धारण किया । 🔥 23,000 वर्षों की कठोर तपस्या : सृष्टि के आदि माता-पिता स्वयंभू मनु और माता शतरूपा ने नैमिषारण्य मे 23000 वर्षो तक तपस्या की ।  गोस्वामी जी लिखते हैं  —   अस्थिमात्र होइ रहे सरीरा। तदपि मनाग मनहिं नहिं पीरा॥ तपस्या करते-करते उन दोनों का शरीर सिर्फ हड्डियों का ढ...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 21) — नारदजी का अभिमान और भगवान श्रीहरि की अद्भुत लीला

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नारदजी का अभिमान और भगवान श्रीहरि की अद्भुत लीला : 🙏 नारदजी का श्राप और भगवान की प्रसन्नता : तुलसीदास जी लिखते हैं — श्राप सीस धरि हरषि हियँ प्रभु बहु बिनती कीन्हि॥ निज माया कै प्रबलता करषि कृपानिधि लीन्हि॥ नारद जी के द्वारा दिए गए श्राप को स्वीकार कर, मन-ही-मन प्रसन्न होते हुए, कृपानिधान भगवान ने अपनी माया को हटा लिया ।  ✨ भगवान ने हटाई अपनी माया : जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी जी रह गईं और ना ही राजकुमारी विश्वमोहिनी  ।  😔 नारदजी का पश्चाताप और श्रीहरि से प्रार्थना : जैसे ही माया हटी, नारद जी को ज्ञात हुआ — " यह मुझसे क्या हो गया ! कैसा अपराध हो गया मुझसे ! " नारद जी ने भयभीत होकर श्री हरि के चरण पकड़ लिए और कहा — "हे शरणागत के दुःखों को हरने वाले! मेरी रक्षा कीजिए ।" भगवान के चरणों में गिरकर बोले — " प्रभु! ऐसी कृपा कीजिए कि मेरे द्वारा कहे गए सभी शब्द झूठे हो जाएँ।" 📖 भगवान का उत्तर — नारद नाम का अर्थ : भगवान बोले —  "असंभव है। आपका नाम ही ' नारद ' है इसका अर्थ है—   जिसकी कही हुई बात रद्द न हो । आपकी ...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 20) — नारदजी का अभिमान और श्रीहरि को श्राप

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 नारदजी का अभिमान और श्रीहरि को दिया श्राप : 😡 नारदजी का अपमान और क्रोध : तुलसीदास जी लिखते हैं — देहउँ श्राप कि मरिहउँ जाई। जगत मोरि उपहास कराई॥ बीचहिं पंथ मिले दनुजारी। संग रमा सोइ राजकुमारी॥ नारद जी को जब ज्ञात हुआ कि स्वयं नारायण ने उनके साथ छल किया है, तो उनके क्रोध की सीमा ना रही । चले नारद जी  विष्णु जी से मिलने और मन में सोचते जाते —   "बैकुंठ जाकर या तो विष्णु को शाप दूँगा या स्वयं प्राण दे दूँगा। उन्होंने जगत में मेरी हँसी कराई!"  🌸 मार्ग में विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन :  किन्तु  भगवान श्रीहरि उन्हें बीच रास्ते में ही मिल गए। इतना ही नहीं एक ओर लक्ष्मीजी और दूसरी ओर वही राजकुमारी विश्वमोहिनी को भी साथ में लिए  । भगवान ने नारद जी से  मीठी वाणी में पूछा—  " नारदजी ! इस प्रकार व्याकुल हो कहाँ चले ?"  ये शब्द सुनते ही नारद जी का क्रोध और भी बढ़ गया, माया के वशीभूत होने के कारण उन्हें होश ही नहीं रहा । लगे श्रीहरि को  बुरा-भला बोलने । 🗣️ नारदजी के कटु वचन : तुलसीदास जी लिखते हैं — पर संपदा सकहु नहिं देखी। तुम्हरें ...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 19) — नारदजी का अभिमान और शिव-गणों को श्राप

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 नारदजी का अभिमान और शिव-गणों को श्राप: 📖 आप पढ़ रहे हैं श्रीराम जी के अवतार का तीसरा कारण : 🔗 श्रीराम जी के अवतार का पहला व दूसरा कारण 👇 ( लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं) 👉 पहला कारण 👉 दूसरा कारण 🙏 नारदजी को वरदान और स्वयंवर में प्रवेश :   नारद जी श्रीहरि से विश्वमोहन का रूप वरदान स्वरूप माँगकर विश्वमोहनी के स्वयंवर में पहुँचे । आगे की कथा प्रारंभ करते हैं — भगवान ने नारद जी को अपना रूप तो दे दिया किंतु चेहरा वानर का दे दिया और इस बात का नारद जी को तनिक भी पता नहीं चला । भगवान ने साथ-साथ चुपके से शिव जी के दो गण भी नारद जी के पीछे-पीछे भेज दिए।  😄 शिवगणों के व्यंग्य और ‘हरि’ शब्द का दो अर्थ : वे दोनो गण नारदजी को सुना-सुनाकर, व्यंग्य वचन कहने लगे— "भगवान ने इनको इतनी अच्छी ‘सुंदरता’ दी है। इनकी शोभा देखकर राजकुमारी इनकी ओर खिंची चली जाएगी और ‘हरि’ (वानर) जानकर इन्हीं को खास तौर से जयमाल पहनाएगी।"   विशेष - ‘ हरि ’ शब्द के दो अर्थ होते हैं—       👉 1- भगवान विष्णु जी         2- वानर न...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 18) — नारदजी का अभिमान और विश्वमोहिनी-विवाह प्रसंग

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 नारद जी का अभिमान और विश्वमोहिनी-विवाह प्रसंग : • नारद जी की व्याकुलता 🙇‍♂️ नारद जी राजकुमारी विश्वमोहिनी से विवाह करने के लिए व्याकुल हो उठे किंतु राजकुमारी विश्वमोहिनी से विवाह करने के लिए नारद जी के पास एक राजकुमार की तरह सुंदर रूप-रंग, वस्त्र-आभूषण तो थे नहीं ।  सोचने लगे—  "इतनी जल्दी तो कहीं से भी व्यवस्था नहीं हो पाएगी ।" हरि सन मागौं सुंदरताई। होइहि जात गहरु अति भाई॥ मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहि अवसर सहाय सोइ होऊ॥  "(एक काम करूँ कि) श्री हरि से सुंदरता माँगूँ । श्री हरि के समान मेरा हितैषी कोई नहीं है, इसलिए इस समय वे ही मेरे सहायक  अवश्य होंगे ।"  • श्री हरि से सहायता की प्रार्थना 🙏 नारद जी जहाँ थे, उसी स्थान पर श्री हरि को पुकारने लगे ।पुकार सुनकर प्रभु प्रकट हो गए।  आपन रूप देहु प्रभु मोहीं। आन भाँति नहिं पावौं ओही ॥ श्री हरि को सामने देखकर नारद जी ने  प्रभु को प्रणाम किया और प्रार्थना की — "हे नाथ! कृपा कीजिए और कृपा करके मेरे सहायक बनिए। प्रभु! मुझे एक दिन के लिए अपना यह रूप मुझे उधार दे दीजिए। " भगवान ने पूछा...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 17) — नारदजी का अभिमान और श्रीहरि की माया

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 नारदजी का अभिमान और श्रीहरि की माया : 🤝 श्रीहरि से भेंट — अपने पुरुषार्थ की चर्चा की। शिव जी के समझाने के बाद भी नारदजी एक दिन भगवान विष्णु से मिलने गए। वहाँ भी उन्होंने श्रीहरि से अपने पुरुषार्थ के बारे में चर्चा की । 😊 श्रीहरि की मुस्कान — अभिमान को तोड़ने का संकल्प। श्रीपति निज माया तब प्रेरी। सुनहु कठिन करनी तेहि केरी॥ नारदजी की बात सुनकर भगवान विष्णु मन में मुस्कुराए और मन में विचार किया कि नारदजी को अभिमान हो गया है। उनके अभिमान को समूल नष्ट करना होगा । तब लक्ष्मीपति भगवान ने अपनी माया को प्रेरित किया।  ✨ हरिमाया का नगर — 100 योजन का अद्भुत नगर रचा। नारदजी जिस मार्ग से जा रहे थे, हरिमाया ने उसी रास्ते में सौ योजन (चार सौ कोस) का एक मायावी नगर रचा। उस नगर में शीलनिधि नाम का राजा रहता था । उसके विश्वमोहिनी नाम की एक ऐसी रूपवती कन्या थी, जिसके रूप को देखकर लक्ष्मीजी भी मोहित हो जाएँ । वह सब गुणों की खान भगवान की माया ही थी। 👑 राजा शीलनिधि व पुत्री विश्वमोहिनी — रूप में अद्वितीय, स्वयंवर का आयोजन। राजकुमारी के स्वयंवर हेतु अनेक राजा वहाँ आए थ...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग 16) नारद का अभिमान और शिवजी की सीख

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नारद का अभिमान और शिवजी की सीख : 🧘‍♂️ तपस्या के बाद नारदजी का अभिमान — कामदेव को हराने का गर्व। जब नारद जी की तपस्या पूर्ण हुई तो नारद जी को लगा—   "मेरे अंदर इतना पुरुषार्थ है कि मैंने कामदेव को हरा दिया।" उन्हें लगा कि उन्होंने  तपस्या पूर्ण कर ली और कामदेव ने भी उनसे क्षमा माँगी- उन्हें इसी बात का घमंड हो गया । अब अभिमान हुआ भी तो किसी से चर्चा नहीं करते किन्तु नारदजी ने शिव जी के पास जाकर पूरा वृतांत कहा। 🙏 शिवजी की सीख — “इस बात की चर्चा किसी से मत करना, विशेषकर भगवान विष्णु से”।  सब कुछ सुनने के बाद शिव जी ने सलाह दी कि अब इसकी चर्चा किसी से मत करना और भगवान विष्णु के सामने तो भूल से भी नहीं।  😌 नारदजी को सीख न भायी — सीधे ब्रह्मलोक पहुँच गए। तुलसीदास जी लिखते हैं — संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहि सोहान। भरद्वाज कौतुक सुनहु हरि इच्छा बलवान॥ यद्यपि शिवजी ने नारदजी को उनके हित की शिक्षा दी, पर नारदजी को वह अच्छी न लगी। ( याज्ञवल्क्य जी बोले ) "हे भरद्वाज ! अब कौतुक (तमाशा) सुनो। हरि की इच्छा बड़ी बलवान है ।" तुलसीदास जी लिखते हैं — राम कीन...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग-15):नारद का अभिमान और श्रीराम अवतार का तीसरा कारण

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नारद का अभिमान और श्रीराम अवतार का तीसरा कारण : 😮 नारदजी का अद्भुत श्राप – राम अवतार का तीसरा कारण : तुलसीदास जी लिखते हैं — नारद श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा॥ गिरिजा चकित भईं सुनि बानी। नारद बिष्नुभगत पुनि ग्यानी॥ भगवान शंकर पार्वतीजी को श्रीराम जी के जन्म का तीसरा कारण  कहते हैं — "देवी ! एक बार तो स्वयं नारदजी ने ही भगवान विष्णु को शाप दे दिया । अतः एक युग में उसी शाप वश श्रीराम जी का अवतार हुआ।" 🤔 पार्वतीजी का आश्चर्य और महादेवजी से प्रश्न: कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा। का अपराध रमापति कीन्हा॥ यह प्रसंग मोहि कहहु पुरारी। मुनि मन मोह आचरज भारी॥ यह बात सुनकर पार्वतीजी बड़ी चकित हुईं और बोलीं —  " नारदजी तो विष्णु भक्त और ज्ञानी हैं । मुनि ने भगवान को शाप किस कारण से दिया, लक्ष्मीपति भगवान ने उनका क्या अपराध किया था ?"  "हे पुरारि ( शंकरजी )! यह कथा मुझसे कहिए। मुनि नारद के मन में भी मोह होना बड़े आश्चर्य की बात है !" 🙏 रघुनाथजी की महिमा – ज्ञानी और अज्ञानी पर समान कृपा : तब महादेवजी ने हँसकर कहा— "देवी ! न कोई ज्ञानी है न मू...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग-14):भगवान राम के अवतार का दूसरा कारण — वृंदा (तुलसी मैया) का श्राप

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 भगवान राम के अवतार का दूसरा कारण — वृंदा (तुलसी मैया) का श्राप : 🪔 जलंधर और देवताओं का युद्ध : दैत्य जलंधर द्वारा देवताओं को पराजित करने की कथा। तुलसीदास जी लिखते हैं — एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलंधर सन सब हारे॥ संभु कीन्ह संग्राम अपारा। दनुज महाबल मरइ न मारा॥ परम सती असुराधिप नारी। तेहिं बल ताहि न जितहिं पुरारी॥ एक समय की बात है कि सभी देवताओं को जलन्धर दैत्य ने युद्ध में हरा दिया । देवताओं को दुःखी देखकर शिवजी ने स्वयं जलन्धर दैत्य के साथ बड़ा घोर युद्ध किया , परंतु उस महाबली दैत्य को उसकी पत्नी वृंदा के पतिव्रत के प्रभाव से मारना असंभव था ।  🌼  वृंदा के पतिव्रत का प्रभाव सती वृंदा के तेज और उसके पतिव्रत की अद्भुत शक्ति ।   वृंदा जलंधर नामक दैत्य की पत्नी थी । वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी और उसके सतीत्व के प्रभाव से जलंधर का वध करना असंभव था ।  🐚 भगवान विष्णु का लीला रूप : भगवान विष्णु द्वारा लीला पूर्वक देवताओं के हित में निर्णय। अतः भगवान विष्णु ने देवताओं के हित में निर्णय लिया । भगवान विष्णु ने छल से वृंदा का सतीत्व भंग किया और जलंधर य...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग-13): रामजी के अवतार का पहला कारण — जय-विजय का श्राप और पुनर्जन्म

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रामजी के अवतार का पहला कारण — जय-विजय का श्राप और पुनर्जन्म 🌸 भगवान श्रीराम के जन्म के अनेक विचित्र कारण : तुलसीदास जी लिखते हैं — राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका । भगवान शंकर कहते हैं —  "देवी ! श्री रामचन्द्रजी के जन्म लेने के अनेक कारण हैं, जो एक से एक बढ़कर विचित्र हैं ।" इस प्रकार भगवान शंकर ने श्री राम जी के अवतार के अनेक कारणों में से पाँच कारण माँ पार्वती को सुनाए हैं, जिनके बारे में विस्तृत जानकारी —  * सबसे पहला कारण  —  🔱 जय-विजय द्वारपालों को सनकादिक मुनियों का श्राप : भगवान श्री हरि के द्वार पर दो द्वारपाल थे - जय और विजय , जिनको सब कोई जानते हैं । एक बार सनकादिक ऋषि भगवान विष्णु से मिलने पहुँचे। द्वारपालों ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इसी कारण क्रोध में आकर सनकादिक मुनियों ने जय और विजय द्वारपालो को श्राप दे दिया । इस श्राप के कारण जय और विजय तीन बार असुर बने । 🕉 सतयुग में हिरण्याक्ष-हिरण्यकशिपु के रूप में जन्म  इनमें से एक ( हिरण्याक्ष ) को भगवान ने वराह (सूअर) का शरीर धारण करके मारा, फिर दूसरे ( हिरण्यकशिप...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग-12): भगवान के विविध अवतारों का रहस्य

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भगवान के विविध अवतारों का रहस्य 🌸 पार्वतीजी का दूसरा प्रश्न — "रामजी सदैव मनुष्य रूप में ही क्यों अवतार लेते हैं?"  पार्वती जी ने कहा —  "नाथ! मेरा यह भ्रम तो समाप्त हो गया है कि राम जी एक ही हैं, लेकिन मेरा दूसरा प्रश्न भी है —   "राम जी सदैव मनुष्य रूप में ही क्यों अवतार लेते हैं ?" 🕉️ धर्म की हानि और भगवान का अवतार — शिवजी का उत्तर तुलसीदास जी लिखते हैं — जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥ करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥ तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥ शंकर भगवान ने कारण बताया — जैसा कुछ मेरी समझ में आता है, हे सुमुखि! वही कारण मैं आपको सुनाता हूँ।   "देवी ! जब-जब धर्म का ह्रास होता है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं। जब धरती पर असुर ,अधम, अत्याचारी बढ़ जाते हैं । अर्थात धर्म को मानने वाले कम और अधर्म को मानने वालों की संख्या बढ़ जाती है।   गौ माता पर , ब्राह्मण पर ,संत पर और धरती पर जब अत्याचार होता है, तब भगवान विविध रूपों में अवतार लेते हैं और सज्जनों की पीड़ा हरते हैं।   विशे...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग-10): 'राम' नाम की महिमा और काशी में मोक्ष का रहस्य

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 'राम' नाम की महिमा और काशी में मोक्ष का रहस्य : 🌸 तुलसीदास जी का प्रमाण — “कासीं मरत जंतु अवलोकी” (काशी में मोक्ष के समय शिवजी द्वारा ‘राम’ नाम का उच्चारण)  तुलसीदास जी लिखते हैं — कासीं मरत जंतु अवलोकी। जासु नाम बल करउँ बिसोकी॥ सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी। रघुबर सब उर अंतरजामी॥ (सभी लोग काशी विश्वनाथ जी की महिमा के बारे में जानते हैं, जहाँ पर स्वयं बाबा विश्वनाथ विराजमान हैं।)   शिवजी काशी की महिमा बताते हुए कहते हैं — "हे पार्वती !मैं वहाँ ( काशी में) सदैव विद्यमान रहता हूँ ।काशी में जब कोई जीव प्राण त्यागता है, तब मैं उसके कान में ' राम ' नाम बोलता हूँ और वह जीव जीवन के आवागमन से मुक्त हो जाता है।" 🌸 काशी में मोक्ष — “राम नाम के प्रताप से जीव का उद्धार” (शिवजी का पार्वतीजी को काशी की महिमा और मोक्ष प्रक्रिया का वर्णन)   शिव जी कहते हैं—  "देवी! मैं किसी को मुक्त नहीं करता हूँ। मेरे मुख से जो ' राम-राम ' शब्द निकलता है, उसी ' राम ' नाम के प्रताप से प्रत्येक जीव जीवन के आवागमन से मुक्त हो जाता है ।" (ऐसा कहा जाता है कि का...

शिव-पार्वती संवाद कथा (भाग-10): ब्रह्म के निर्गुण-सगुण रूप का रहस्य और रामजी का साकार स्वरूप

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 ब्रह्म के निर्गुण-सगुण रूप का रहस्य और रामजी का साकार स्वरूप :  🌸 तुलसीदास जी का प्रमाण — "एक बात नहिं मोहि सोहानी" (शिवजी ने पार्वतीजी के मोहवश कहे वाक्य पर चर्चा की) तुलसीदास जी लिखते हैं — एक बात नहिं मोहि सोहानी। जदपि मोह बस कहेहु भवानी॥ तुम्ह जो कहा राम कोउ आना। जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना॥ शंकर भगवान ने कहा— "परंतु, हे पार्वती! आपकी सब बात मुझे अच्छी लगी एक बात को छोड़कर । एक बात मुझे अच्छी नहीं लगी, मैं जानता हूँ कि आपने मोह के वश होकर ही कही है। आपने जो यह कहा— 🌸 राम कोई और हैं? — मोह रूपी पिशाच से ग्रस्त जनों की मान्यता  : (शिवजी का स्पष्ट कथन — रामजी को अलग मानना अज्ञानता है) कौन-सी बात ? "आपने जो यह कहा कि वे राम कोई और हैं, जिन्हें वेद गाते और मुनिजन जिनका ध्यान धरते हैं- राम जी कोई और है!"  तुलसीदास जी लिखते हैं — कहहिं सुनहिं अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच। पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच॥  "देवी! क्या आप जानती हैं कि ऐसा कौन कहता है ?" "जो मोह रूपी पिशाच के द्वारा ग्रस्त हैं, जो धर्म को नहीं जानता, जो सत्य-असत्य को नहीं...